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अमात्य समुद्देश
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गर्ग' विद्वान् ने भी धान्यके विषय में इसी प्रकार कहा है ॥१॥
समस्त धान्यों में कोदो चिरस्थायी (घुण न लगने वाले ) होते हैं, अतः उनका संग्रह करना चाहिये |orl
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भारद्वाज' विद्वान ने भी शिक्षकों वाले धान्य व कोदों को चिरस्थायी बताया है ॥१॥ सचित धन का उपयोग, प्रधान व समह करने योग्य रस व क्षपया का माहात्म्य-अनर्थं नवेन वर्द्धयितव्यं ष्पयितम्यं च । ७१ । लवणसंग्रहः सर्वरसानामुत्तमः ॥७२॥ सर्वरस - मयमप्यचमलवणं गोमयायते ॥ ७३ ॥
अर्थ :- पुरानी स ंचित धान्य व्याजूना (फसलके मौके पर कपकोंको बादी में देना) देकर बहनें नवोन धान्य के काय द्वारा बढ़ानी चाहिये और ब्याज द्वारा प्राप्त हुयी धान्य खर्च करते रहना चाहिये, ताकि धन की हानि न हो सके ||७१ ||
वशिष्ठ विद्वान् ने भी पुरानी संचित धान्यको व्याजूना देने के विषय में इसी प्रकार कहा है ॥१॥
समस्त घृत व तेल प्रभृति रसोंके संमहमें नमक संग्रह उत्तम है अतः विवेकी पुरुष उसका संग करे क्योंकि नमक के बिना सब रखोंसे युक्त अन्न भी गोबर समान अवचिकर लगता है ॥७२-७३ ।। विद्वान उद्धरण का भी यही अभिप्राय है ॥१॥
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छवि अमात्य समुद्देश ।
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जम्मै मात्रा विचीयते । मुझे किसे बनावेन स्वनेनापि विधीयते ॥१॥
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महाजवान्यानि सर्वाणि कोप्रभृतीनि च । चिरजीवील वन्यायेन युक्तः समः ॥१४
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१ तथा च मशिन बस मेन विचसा प्राप्तो भवेधस्तुत्यभावः ७ तथा चारीतः स्वानः भिगो यदि सिगोमथास्वाद [गृहीत्वा चि] 199
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