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नीतिवाक्यामृत
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सारांश यह है कि जिस प्रकार जो पूर्ण (भरपेट दूषित खून पोने साली होने पर फट जाती हैं, उमी प्रकार क्षुद्र प्रकृति वाले सेवकभो अत्यन्त धनाढ्य होनेपर मदोन्मत्त होकर अपने स्वामीका अनर्थ करने तत्पर रहते हैं, अतः उन्हें दरिद्र रखनाही न्याय-युक्त है ।।१॥
जिस सचिव-अमात्यमें निम्न प्रकार छह दोष पाये जायें, इसे अमात्य पदपर निशक्त नहीं करना पाहिये । १ भक्षण-राजकीय धन खानेवाला, २ उपेक्षण राजकीय सम्पत्ति नष्ट करनेवाला, अथया धन प्राधिमें अनादर करनेवाला ३ प्रवाहानत्व-जिसको बुद्धि नष्ट हो गई हो, या जो राजनैतिक शान-शून्य (मूख) है, ४ उपरोध-प्रभावहीन (उदाहरणार्थ-राजकीय द्रव्य हड़प करनेवाले दूसरे अधिकारियोंको देखते हुये जिसके द्वारा रोके जाने परभी वे लोग अनर्थ करनेसे न चूकें ऐसा प्रभावहीन व्यक्ति) ५ प्राप्वार्या प्रवेश-जो टेक्स आधि उपायों द्वारा प्रान इभा धन राज-कोषमें जमा नहीं करता हो. तुम्य विनिमयओराजकीय बहमल्य द्रव्य मल्पमूल्यमें निकाल लेता हो। अर्थात जो बहमस्यं सिक्कों (असर्फी मादि) को स्वयं ग्रहण करके और उनके बदले में अल्प मुल्य वाखे सिक्के (रुपये आदि) राजकीय नजाने में जमा कर देवा हो अथवा चलाने में प्रयत्नशील हो ! सारांश यह है कि जो गाना या प्रजा उक्त दोष-युक्त पुरुषको मर्म सचिव बनाता है, उसका राज्य नष्ट हो जाता है ।।४७||
शुक' विद्वान्ने भी कहा है कि जो अमात्य दुष्ट प्रकृति-धरा राजकीय धन अनेक प्रकारसे नष्ट कर डालता हो, वह राजा द्वारा त्यागने योग्य है ॥१॥
राजतन्त्र, स्वयं देख रेखके योग्य, अधिकार, राजतन्त्र ध नीवी-लक्षण, आयव्यय-शुद्धि और उसके विवादमें राज-कर्तव्य
पहुमख्यमनित्यं च करणं स्थापयेत् ॥४८॥ स्त्रीष्वर्थेष च मनागप्यधिकारे न आतिसम्बन्धः ॥४६॥ स्वपरदेशजावनपेक्ष्यानित्यश्चाधिकारः ॥५०॥ मादायकनिबन्धक प्रतिबन्धकनीवीग्राइक राजाध्यक्षाः करणानि ॥५०॥ प्रायव्ययविशुद्ध द्रध्यं नीवी ॥५२॥ नीवीनिवन्धकपुस्तकग्रहणपूर्वकमायव्ययौ विशेषवेद १५ मायव्ययविप्रतिपत्ती कुशलकरणकार्य पुरुष म्पस्तद्विनिश्चयः ॥५४॥
अर्थ-राजा या प्रजा द्वारा ऐसे राज्यतंत्रकी स्थापना होनी चाहिए, जो बहवसे शिष्ट अधिकारियों कीविसे संचालित हो एवं जिसमें अधिकारियों की नियुक्ति स्थायी न हो क्योंकि असा अधिकारी स्वेच्छासे अनर्थ भी कर सकता है एवं स्थायी नियुक्तिवाले अधिकारी राज-कोषकी पति करने वाले भी होसकते हैं मत: मंत्री सेनाध्या पावि करश की नियुक्ति भनेक सीविय शिष्ट पुरुषों सहित सपा प्रमानुसार बदलनेवाली होनी चाहिये ॥४८॥
गुन बिहान् के सदरणका भी यही अभिप्राय है ॥१॥
- -. .. . .... . . . . . ... - ... . . . . ..- -.--.---... .... 1वचा शुरु:-यो मात्यो राजकीय संगापिप्रकारचेत् । सदेव टमावेन स त्याज्यो साचो पैः ॥ २ बबा गुरु:-प्रशाश्व प्रकतम्य' भवं चिसिपानकः । बहुशिष्ट' यस्माचदम्बा वित्तमम् ॥