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अमात्य समुदेश
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साप धूलिमें खेख चुका हो; क्योंकि वह अति-परिचयके कारण अभिमान-वश अपनेको राजा समान सममता ॥
मिनि विद्वान् के संगृहीत श्लोकका भी यही आशय है ॥ १॥ कर हृदयवाला पुरुष अधिकारी बनकर समस्त अनर्थ उत्पन्न करता है ॥ ३६ ।। गर्ग विद्वान ने भी दुष्ट हृदयवाले व्यक्तिको अमात्य बनानेसे राज्य-चति होनेका निर्देश किया है।
राज द्वेषी कर हृदयवाने पुरुषको मंत्री बनानेस जो हानि होती है उसके समर्थक शकुनिक दुर्योधनका भामा जिसे उसने कोरवोंका राज-मंत्री बनाया था) और शम्टाल (नन्द राजाका मंत्री) ये दो ऐतिहासिक उदाह्मण जानने चाहिये । अर्थात् उक्त दोनों दुष्ट हृदयवाले मंत्रियोंने अपने स्वामियों ने द्वेष कर राज्य में अनेक अनर्थ उत्पन्न किये, जिसके फल स्वरूप राज्य-क्षति हुई ॥ ३७॥
मित्रको अमात्य आनि अधिकारी बनानेसे राजकीय-धन व मित्रताको क्षति होती है । अथोत् मित्र अधिकारी गजाको अपना मित्र समझकर निभयदा-पूर्वक उन होकर उसका धन खा लेता है, जिससे राजा उसका बध कर डालता है, इस प्रकार मित्रको अधिकारी बनानेसे राजकीय धन व मित्रता दोनधि नाश होता है, अत: मित्रको अधिकारी नहीं बनाना चाहिये ॥३८॥
रैभ्य' विद्वान्ने भी मित्रको अधिकारी बनानेसे यही हानि निर्दिष्ट की है, १॥
मूर्खको मन्त्री-आदिका अधिकार देनेसे स्वामीको धर्म, धन व यश प्राति कठिनाईसे होती है अथवा निश्चित नहीं होती। क्योंकि मूर्ख अधिकारीसे स्वामीको धर्मका निश्चय नहीं होता और न धन प्राप्ति
--. -.--.-....-. -..--..- -- - - - - - - -- - मिनि:-पाल्यातप्रभूति यःसार्च कोषितो मभुजा सदा । स च स्यान्मानिलयः स्थाने सन्मन पार्विचारते २ वथा व गर्ग:-अन्तयममात्य था कुरुते पूर्थिवीपतिः । सोऽमर्थानित्यवः कृत्वा सय विनायवेत् ।। . गनिमा पसात- गान्धार देश के राजा सुपसका पुत्र । दुर्योधनका मामा पा, मोकि कोष (वार
पुन पुर्पोधन द्वारा राज-मंत्री पदपर नियुद्ध किया गया था। याबदामापय था, इसखिये व पावकि सवाल अपशावासकी अवधि पूर्वाईप महात्मा फस मीखि निपुर विवरणीने इसे बहुत समझाया कि कार पापडयोका बाप-मात राज्य दुर्योधमसे वापिस दिखा दो, परन्तु इसने न मानी और पासों से पैरविरोध रस्सा और दुर्योधनको उस मे सन्धि करने दी । जिसके फवासमा महाभारत या, जिमें
इसने अपने स्वामी दुर्गोपनका पण बापापा और स्वयं मारा गया। x शामका चान्द-बह से ११० वर्ष पूर्व राजा नन्दा मंत्री था, जोकि परा बुथ क्या।
अपाण-परा अहवासाने हो की सजा दी गई हो । छ दिनोके परचात् माने इसे खानेसे : राम-मंत्री पवपर अभिहित ाि , परम्न बह साले उदया, इसलिये यह उसके पातकी प्रवीशमहापा, अतः अक्सर पाकर यह हाट बाम प्रधान-अमाव पाविश्वसे मिक्षा गवार उसकी सहायताले इसी
अपने स्वामी रामानन्दको मरवा सका। पारेबा-नियोगे संलिपुत्रस्त सहवित्तमायेन् । स्नेहाधिरेन नि:शस्तयो कमवाप्नुयात् ॥1॥