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अमात्यसमुदंश ........................ प्रास निष्कासन (निकालना) सूक्ष्म नलोके अप्रभाग द्वारा धीरे २ करता है, उसीप्रकार नैतिक पुरुष व राज-मन्त्रीको क्रमशः म्यापारादि द्वारा और टेक्स द्वारा सम्पचिकी आमदनी अधिक परिमाणमें करते परमाप सर्च करना चाहिये ।।४।।
. गुरु विद्वाम्ने भो कहा है कि 'मन्त्रियोंको खर्चकी अपेक्षा घनकी आमदनी अधिक परिमाणमें अनी चाहिये, अन्यथा राज्य-इति होती है ॥ १॥ भाय-व्ययका साक्षण, बामदनीसे अधिक खर्चका निषेध, स्वामी शब्द का अर्थ और तन्त्रका लक्षण
आयो द्रव्यस्योत्पत्तिमुखम् ।।८ पथास्वामिशासनमर्थस्य विनियोगो व्ययः|६।। भायमनालोच्य व्ययमानो वैश्रमणोऽप्यवश्यं श्रमणायने ॥१०॥ रामः शरीरं पर कसत्र मास्यामि मा सामिशब्दाः ॥१६॥ तन्त्रं चतुरावलम्॥१२॥
भर्ध-सम्पति उत्पन्न करनेवाले न्यायोषित साधन उपाय कृषि, व्यापार व राज पचमें उचित कर-टेक्स लगाना-भाविको 'माय' (भामदनी) कहा है ॥८॥ स्वामीकी आज्ञानुसार धन खर्च करना 'इयर' १ सारांश यह है कि राजनैतिक प्रकरण में मंत्रीको राजाकी अशापूर्वक राजकोश से सैन्य-रका मावि में धन खर्ष करना चाहिए ॥६॥ जो मनुष्य भामदनी को न विचार कर अधिक खर्च करता है, वह कोर समान असव धन का स्वामी होकर भी मिलुक समान भाषरण करता है-दरिद्र होजाता है, फिर अपनी मनुष्य जाहिरोमा को लाभाविक राजा का सीर, धर्म, रानियां - पामार इनका स्वामी शबसे बोध होता है। सारांश यह है कि मंत्री को इन सबकी रथा करनी चाहिये म्योकि इनमें से किसीके साथ और विरोध करनेसे गला रुष्ट होजाता है ॥१६॥ चतुरङ्ग (हावी, पोदे भरणा गेही व पैदल इन पारी बापासी) सेनाको 'तन्त्र' कहा है ॥१२॥ मंत्री के दोष और उनका विवेचन एवं अपने पेशका मंत्री--
वीरगनवस्वमशुचि व्यसनिनमशुदाभिजनमशक्यप्रत्यावर्तनमतिष्पयशीलमन्यात देशापात्रमविधिका धामात्यं न कुर्वीत ॥१३॥ तीयोऽभियुक्तो प्रियते मारपति का
पुरु-पापोयलाकारों बालित्पन्न मनिलमि।। विपरीतो वयो यस्य स राज्यस्य विmam Aइसके पश्चात 'पल्पाग' पब म.प्रतियों में है, जिसका अर्थ योकी पाप करनेवाला है।