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नोतिवाक्यामृत
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पाषाणले बक्कल छोलने समान असंभव है। अर्थात जिसप्रकार पत्थरसे वकाल निकालना असंभव है, उसीप्रकार अत्यन्त लुब्ध मंत्रीसे गृहीत धनकी प्राप्ति भी असम्भव है, अतः कृपण पुरुषको कदापि अर्थमंत्री मादि पदोंपर नियुक्त नहीं करना चाहिये ।। २० ।।
अत्रि विद्वान्के उद्धरणका भो यही अभिप्राय है ॥ १ ॥ योग्य-अयोग्य अधिकारी, अयोग्योंसे हानि, बंधु सम्बन्धके भेद व लक्षण- सोऽधिकारी य: स्वामिना सति दोषे मुखेन निगृहीतुं शक्यते ॥ २१ ।।
माझण-पत्रिय-सम्बन्धिनो न कुर्यादधिकारिणः ॥ २२ ॥ प्रामणो जातिवशासिमप्यर्थ कच्छूण प्रयच्छति, न प्रयच्छति वा ।। २३ ।। पत्रियोऽमियुक्तः स्वड्ग दर्शयति ॥ २४ ॥ सम्बन्धी ज्ञातिमावेनाक्रम्य सामवायिकान् सर्वमप्यर्थ ग्रसते ॥ २५ ॥ सम्पन्धस्त्रिविधा श्रौतो मौख्यो यौनश्च ॥ २६ ।। सहदीक्षितः सहाध्यायी वा श्रोतःB ॥ २७ ॥ मुखेन परिक्षातो मौख्यः ॥२८॥ यौनेर्जातो यौनः ॥ २६ ॥ वाचिकसम्बन्धे नास्ति सम्बन्धान्तरानुवृतिः ॥ ३० ॥
भई-वही व्यक्ति मन्त्री आदि अधिकारी परके योग्य है, जो अपराध करनेपर राजा बारा सरखतासे दखित किया जा सके ॥२१॥
किसी नीति विद्वान उद्धरणका भी यही अभिप्राय है ॥ १॥ राजाके मामण, सत्रिय व बन्धु आदि सम्बन्धियोंको अमात्य आदि अधिकारी नहीं बनाना
याशि :-mवं पदो पात् कपणेन हरा एनम् । यतस्ता प्रश्न येत् तस्मात्तं दुरवस्त्यजेत् ॥ १॥ इसके स्थान में 'मैत्री' ऐसा पाठान्तर मूल प्रतियों में वर्तमान है जिसका अर्थ राजाका मित्र रूप अमात्य है। B पितामहापागतः वः इसप्रकारका पाठान्तर मूल प्रवियों में है, जिसका अर्थ यह है कि पंह परम्परासे को
जाने बाई चमात्यको और पाते हैं cात्ममा प्रतिपको मैत्रः समकारका प्रतियों में पाठान्तर है, जिसका अर्थ यह है कि जो राजाके पास में बोके
लिए पापा हो और उसने उसे मित्र मान बिया हो। नया पोत- सोविकारी सदा स्मः कृत्वा पोषं महोदने । ददाति याचितो व साम्नाय समयमामा ॥३॥