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भ्यसनसमुरेश
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७ पर-निन्दा, ८ गीत-श्रवणमें आसक्ति, ५ नृत्यदर्शनमें भासक्ति, १० वादिन-श्रवणमें भासक्ति ११ वृथागमन, १२ ईयो १३ साहस (परस्त्री-संकन व कन्या-दुषण), १४ अर्थदूषण, १५ भकारणवध, १६ इम्प-हरण, १७ कर्फशवश्चन और भौर १८ पगडपारुष्य । नैतिक व्यक्तिको इनका त्याग करना चाहिये ।
इसि व्यसनसमुश।
११ स्वामी-समुद्देश। राज्ञाका लक्षण, अमात्य-श्रावि प्रकृति-स्वरूप, असत्य व धोखा देनेसे हानि
धार्मिकः कुलाचाराभिजनविशुद्धः प्रतापवाणयानुगतवृत्तिश्च स्वामी ॥ १ ॥ कोपप्रसादयोः स्वतन्त्रः ।। २ ।। आत्मातिशयं धनं या यस्यास्ति स स्वामी ॥ ३ ॥ स्वामिमूलाः सर्वाः प्रकृतयोऽभिप्रेतार्थयोजनाय भवन्ति नास्वामिकाः ॥ ४ ॥ 'उच्छिन्नमूलेषु तरुषु किं कुर्याद पुरुषप्रयत्नः ॥ ५ ॥ असत्यवादिनो नश्यन्ति सबै
गुणाः ॥ ६ ॥ पञ्चकेषु न परिजनो नापि चिरायुः ॥ ७ ॥ अर्थ-जो धर्मात्मा, कुलापार व कुलोनशाके कारण विशुद्ध, भाग्यशाली, नैतिक, दुष्टोंसे हुपित व शिष्ट्रसे अनुरक्त होने में स्वाधीन और प्रात्म-गौरव-युक्त तथा प्रचुर सम्पत्तिशाली हो उसे 'राजा कहते हैं ।। १-३ ॥
शुक्र गर्ग', व गुरु' विद्वानों ने भी राआका इसीप्रकार शक्षणनिर्देश किया है॥१३॥
'मामातिएयजन मा पस्पाति स स्वामी' इसप्रकार भू० प्रवियोंमे पाठान्तर है, जिसका अर्थ यह है कि जो अन्य
से अतिशयमान हो पा स्वामी है, रोष पूर्ववत् । । पथा र एक-धार्मिको वः कुलाचारविनद्धः पुषयपासपी । स स्वामी कुरुते राज्य विशुष्वं साम्परा ॥ २ समाप गर्गः-स्वामतः करसे यश्स निग्रहानुमही जने । पापे साधुसमाचार स स्वामी नेतरः स्मृतः ॥ .. ३ तथा गुरु:-श्रामा विद्यते पस्य धनं घा विद्यते बहु । स स्वामी प्रोच्यते लोकनेतरोन थंचन ॥१॥