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नीतिवास्थामृत
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अर्थ-जो मनुष्य प्रत्यक्ष द्वारा जानो हुई बस्तुको भी अच्छी तरह परीक्षा-संशय, भ्रम व अज्ञानरहित निश्चय-करके उसमें प्रवृत्ति करता है, उसे निश्चयसे विचारझ---विचारशास्त्रका वेत्ता कहते हैं ।।६॥
ऋषिपुत्रका विद्वानने भी कहा है कि जो व्यक्ति स्वयं देखी हुई वस्तुकी अच्छी तरह जाँच किये यिना उसका निश्चय नहीं करता-जाँच पूर्वक ही निर्णय करता है, उसे 'विचारज्ञ' जानना चाहिये ।।१।।
विना विचारे-अत्यन्त उतायलोसे किये हुए कार्य लोकमें कौन से अनर्थ-हनि (इट प्रयोजना क्षति उत्पन्न नहीं कर सभी प्रकार के अनमत्य करसे हैं !!!
भागुरि विद्वान्ने कहा है कि विद्वान् सार्थक या निरर्थक कार्य करते समय सबसे पहले उसका परिणाम-फल प्रयत्नसे निश्चय कर लेना चाहिये । क्योंकि विना विचार पुर्वक अत्यन्त उतावलीसे किये हुए कार्योका फल चारों तरफसे विपत्ति-युक्त होनेसे मृदयको संतापित करनेवाला और कीलेके समान चुभनेवाला होता है ।। १ ।।
जो मनुष्य विना विचारे उतावलीमें आकर कार्य कर बैठता है और पश्चात् उसका प्रसीकार (इलाज-अनर्थे दूर करनेका उपाय) करता है, उसका वह प्रतीकार उपयोगी जल-प्रवाहके निकल जानेपर पश्चात् उसको रोकनेके लिये पुल या बंधान बाँधनेके सदृश निरर्थक होता है, इसलिये नैसिक पुरुषको समस्त कार्य विचार पूर्वक ही करना चाहिये ॥८॥
शुक्र विद्वान्ने भी कहा है कि जो मनुष्य समस्त कार्य करने के पूर्व उनका प्रतीकार-अनर्थपरिहार नहीं सोचता और पश्चात् सोचता है, उसका ऐसा करना पानीका प्रवाह निकल जानेपर परचा बंधान बांधनेके समान निरर्थक होता है ।।१।।'
शारीरिक मनोज श्राकृति, पराक्रम, राजनैतिक-ज्ञान-सम्पत्ति, प्रभाव (सैन्य व कोशशक्तिरूप तेज) और नम्रता, राजकुमारों में वर्तमान ये सद्गुण उन्हें भविष्यमै प्राप्त होनेशानो राज्यभीके अनुमापक चिन्ह है।
राजपुर विद्वान्ने भी कहा है कि जिन राज-पुत्रों में शारीरिक सौन्दर्य, वीरता, राजनैतिक ज्ञान, सैनिक व कोश सम्बन्धी वृद्धि और विनयशीलता ये गुण पाये जायें, तो वे भविष्यमें राजा होते हैं ।'
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तथा च पाषिपुत्रका-विचारशः स विशेयः स्वयं रऽपि वस्तुनि । सावन्नो निश्चर्य कुर्याद् यावन्मो साधु वीषितम् । तथा च भामुरिः-सगुणमविगुणं दा कुर्वता कार्यमादों, परिमतिरषधार्या यत्नतः परिहतेम |
अतिरमसकृतानों कर्मणामाषिपत्तेभवति हृदयदाही शल्यतुल्यो विपाकः ॥1॥ ३ तथा च शुक्रः सर्वेषामपि कार्याणो यो विधान न चिन्तयेत् । पूर्व पश्चाद् मवेद् व्यर्थ सेतुन योदके ॥ ४ तथा च राजपूत्र:--प्राकारो विमो बुद्धिविस्तारो नम्रता तथा । वाहानामपि येषां स्युस्सं स्यु भूपर नपारममा KM