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नीतिवाक्यामृत
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नाक्षण' कहा गया है ॥ ३५ ॥ जो गुप्तचर अपने बंधुजनोंसे प्रेम नहीं करता, उसे 'कर' कहते है ॥ ३६ ।।
स पालन में साह रखनेवाले पालेसी गुमचरीको 'रसद' कहते हैं । ३७ ।। मूर्खको 'जद' गूगेको क' बहिरेको 'यधिर' और अंधेको 'अंध' कहते हैं परन्तु ये स्वभावसे मूर्ख, गूगे बहरे और मन्धे नहीं होते, किन्नु कपटसे अपनी प्रयोजन-मिद्धिके लिये होते हैं ।। ३८॥ ___शुक्र'विद्वानने भी कहा है कि जिस राजाके यहां स्वदेशमें 'स्थायी' और शत्र देशमें 'यायो' गुप्तचर मते रहते हैं, उसके राभ्यकी वृद्धि होती है ॥ १॥
प्रति चारसमुरेश
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१५-विचार समुदेश विचार पूर्वक कर्तव्य-प्रवृत्ति, विधार-प्रत्यक्षका लक्षण व ज्ञानमात्रसे प्रवृत्ति- निवृत्ति क्रमशः
नाविचार्य कार्य किमपि कुर्यात् ॥ १ ॥ प्रत्यक्षानुमानागमैर्यथावस्थितवस्तुव्यवस्थापनहेतुविचारः ॥ २ ॥ स्वयं दृष्टं प्रत्यक्षम् ॥ ३ ॥ न ज्ञानमात्रत्वात् प्रेक्षावतां प्रवृत्तिनिवृत्तिनी ॥ ४ ।।
स्वयं दृष्टेऽपि मतिर्वि मुखति संशेते विपर्यस्यति वा किं पुनर्न परोपदिष्टे वस्तुनि ॥५॥ अर्थ-नैतिक पुरुप विना विचार-विना मोचे-समझे (प्रत्यक्ष, प्रामाणिक पुरुषों के वचन युक्ति द्वारा निर्णय किये विना) कोई भी कार्य न करे ॥१॥
जैमिनि विद्वान्ने कहा है कि 'प्रजा द्वारा प्रतिष्ठा चाहनेवाला राजा सूक्ष्म कार्य भी विना विचारे न करे ॥ १॥
___ सत्प-यथार्थ (जैसीकी देसी) वस्तु की प्रतिष्ठा (निर्णय) प्रत्यक्ष, अनुमान व भागम इन तीन प्रमाणों से होती है, न कि केवल एक प्रमाणसे । इसलिये उक्त प्रत्यज्ञादि सीनों प्रमाण द्वारा जो सस्य वस्तुकी प्रतिष्ठाका कारण है उसे 'विचार' कहते हैं ।शा
, तथा च शुक्र-स्थायिनो यायिनरचारा यस्य सर्पम्ति भूपतेः । स्वपो परपरे वा सस्य राज्य विपद्धते ।। १ ॥ २ तथा च जैमिनिः-- अपि स्वस्पतरं काय मारिचाय ममारेत् । मदीपईन् सबोकस्य रासो राग विशेषतः ॥५॥