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विचारसमुरेश
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जिसप्रकार पाएकालके सरोवरका पानो अधिक मात्रामें होने पर भी शिष्ट पुरुषों के उपयोग में न 'मा कारण या स-चन भी शजनों के उपयोग न मानेसे व्यर्थ है ॥ १८ ।।
नारद विद्वान ने कहा है कि 'सम्झनों के उपभोग-शून्य पाण्डाल-वासावके पानी समान रुपण मनसे क्या नाम है? कोई लाभ नहीं ॥१॥
जनसाधारण एक दूसरेको देखादेखी करते हैं यदि कोई मनुध्य किसी शुभ-अशुभ मार्गसे जाता है तो उसे देखकर दूसरे लोग भी बिना परीक्षा किये ही उसका अनुकरण करने लगते हैं। क्योकि यदि प्रय श्रेश्या धर्मका उपदेश देती है तो उसे कोई प्रमाण नहीं मानता और यदि गो-घातक मामण धर्मका अपदेश देता है, तो लोग उसकी बात प्रमाण मानते हैं ।। १६ ।।
गौतम farन ने भी कहा है कि विश्य धार्मिक होनेपर भी पदि धर्मोपदेश देती है तो उसे कोई नहीं पूछता और गो-हत्या करनेवाला ब्राह्मण यदि धर्मका उपदेश देता है तो उसको सब प्रमाण मानते हैं ॥१॥
किसी विवाम ने भी कहा है कि जनसमूह वास्तविक कर्तव्य-मार्गपर नहीं पलते किन्तु एक एमरेकी देखादेखी करनेवाले होते हैं। पालुका-रेतमें लिङ्गका चिन्ह बनानेसे मेरा (कमा- मायकका) तांबेका वर्तन नष्ट होगया ॥१॥
प्रति विचार समुचेरा ।
पवार नारद:-किशोनाराधनेमात्र किमन्यजतदापत्रम् । सति पनि भो भोग्य साधूना समजायते ॥1॥
या - गौतमः कहिनी धर्मापि यदि स्यादुपसिनी कोऽपि पृथ्त जनो गोप्न हिज मा . १ मा गोस्व-गतानुगतिको शोको न शोकः पारमार्मिकः । वालुकाक्षिामात्रेण गर्ने मे शानभाजनम ॥ ..
कोई डि माय हायमें जान-बम र समुद्र तत्पर हमmा गया | उसमे उसे गोपीक भयस महमतर पर मकर वोदकर उसके बीच गाव विमा चौर स्मृतिके सिपे उसकी सके पर franaन बनाकर स्मान करने रखा गया । इसी अवसर पर बहुपसे योग हा स्नान करनेक सिषे भाये मामयगचित हुए पाकचाको देखकर इस पर्व में यही कायाणकारक है। ऐसा समझाकर जमोंने वहाँपर बहुतसे बालग.
ला बना राव पेसा होनेसे यह मामण अपने बनाये हुए वालुका लिङ्गको न समझ सका; भतएव उसका तात्र. मय पर्सन न मिलनेसे नए होगया । निष्कर्ष यह रे जनसाधारण परोक नहीं होते किन्तु एक मोको देखादेखी पाते।
मंगृहीत