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नाविषाक्यामृत
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मानस्य असावधानी से हानि तथा मनुष्य-कर्तव्य कमशः
अलसः सर्वकर्मणामनधिकारी ॥१४॥ प्रभादवान् भवत्यवश्य विद्विषां यशः ॥१४॥ कमप्यात्मनोऽनुक्ल प्रतिकूलन कयात् ॥१४६।।
प्राणादपि प्रत्यवायो रवितव्यः A ॥१४७॥ मर्थ-पानसी पुरुष समस्त राजकीय मादि कार्योंके अयोग्य होता है ॥१४॥
राजपुत्र' विद्वान ने कहा है कि 'जो राजा छोटे २ कार्यों में भी आलसी अधिकारियों-मंत्री-आदिको नियुक्त करता है उसके समस्त कार्य सिद्ध नहीं होते ||शा'
जो मनुष्य कर्तव्य-पालनमें सावधान वा उत्साही नहीं है, यह शत्रुओंके वश होजाता है ॥१४॥
जैमिनि पिताम् ने भी कहा है कि 'जो राजा छोटे २ कार्यों में भी शिथिलता करता है, वह महान ऐश्वर्य-युक्त होकरके भी शत्र के अधीन होजाता है ।शा'
नैतिक मनुष्यका कर्तव्य है कि किसी भी अनुकूल-मित्रको शत्र, न बनाये ११४६।।
राजपुत्र' विद्वान ने भी कहा है कि जो राजा मित्रको शत्रु बनाता है, उसे इस मूर्खताके कारण अनेक कष्ट र अपकीर्ति उठानी पड़ती है । ___ मनुष्यको प्राणोंसे भो भधिक अपने गुप्त रहस्यको रक्षा करनी चाहिए ॥१४॥ .
मारि विज्ञामने कहा है कि 'राजाको अपने जीवनसे भी अधिक अपने गुप्त रहस्य सुरक्षित रखने पाहिये, क्योंकि शत्र भोंको मालूम होजानेपर के लोग प्रविष्ट होकर उसे मार डालते हैं ।।१।।'
A 'पावावपि प्रत्यायो न सिम्प:' इसप्रकार मु.म.न.वि.म. प्रतियोंमें पालम्पर है, जिसका अर्थ यह कि अपने में दोष होनेपर भी कामासनहाना नहीं करना चाहिये। अवश्य करना चाहिये। सारास मह
समें पावरका और सं• टी• पुस्तक पाठमें अपने गुप्तरहस्यकी का मुख्य है । सम्पादकबाप रामना-मावस्मोपइसान पोन विदात्यधिकारियः। सूत्रोमपि चकत्येम सिध्येतानि तस्य हि .प्रथा मिति:-मुसून्मेष्वपि हान्येषु शैधिक्य मुले पा । स राजा रिपुरमा स्यात् [प्रभूवधिमयोऽपि सम्]m
बर्ष पर संशोधित परिवर्तित । सम्पादक. याच राजपुत्र:- मित्राने वर्तमान कानुन विपापा । स मूखों भम्पते राजा अपवाद वगति m . यामागुरि:-मात्मणिय परत जीवावपि महीपतिः । यतस्तेन प्रसान प्रविश्य नन्ति समर HAR