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नीतिवाक्यामृत
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यदि दूतोंके मध्यमेसे पाण्डाल भी दूत बनकर आये हों, तो ये भी पध करनेके अयोग्य है उसवर्णवाले साह्मण दुतोका तो कहना ही क्या है ? अर्थात् वे तो सर्वथा बध करने अयोग्य होते हैं २०-२१
शुक्र विद्वान ने भी कहा है कि 'बूतोंमें यदि चाण्डाल भी हो तो राजाको अपनी कार्य सिद्धिके लिये जनका अध नहीं करना चाहिये ॥१॥
दूत राजा द्वारा बध करनेके अयोग्य होता है, इसलिये वह उसके समक्ष सभी प्रकारके-सत्य, असत्य, प्रिय व अप्रिय-वचन बोलता है; अतः राजाको उसके कठोर वचन सहन करना चाहिये ।।२२।।
कौन थुद्धिमान् राजा दूतके पचन सुनकर शत्रकी उन्नति और अपनी अवनति मानता है ? कोई नहीं मानता । अभिप्राय यह है कि राजाको दूत द्वारा प्रगट हुई शत्र-वृद्धि प्रामाणिक-सत्य-नहीं माननी चाहिये ॥२३॥
वसिष्ठ विद्वान्ने भी कहा कि 'बुद्धिमान् राजाको ईर्ष्या छोड़कर दुद द्वारा कहे हुए प्रिय और अप्रिय सभी प्रकारके वचन सुनने चाहिये ॥१॥ - दूतके प्रति शत्रु रहस्यज्ञानार्थ राज-कर्तव्य व शत्रु लेख--
स्वयं रहस्यज्ञानार्थ परदूतो नयायः स्त्रीभिरुभयवेतनस्तद्गुणाचारशीलानुवृत्तिभिर्वा धंचनीयः ॥ २४॥
चत्वारि वेष्टनानि खङ्गमुद्रा च प्रतिपक्षलेखानाम् ॥ २५ ।। अर्थ-राजाका कर्तव्य है कि वह शत्र राजाका गुप्त रहस्य-सैन्यशक्ति प्रादि जाननेके लिये उसके दूतको नीतिम वेश्यामों, दोनों तरफसे वेतन पानेवाले दूतों तथा दूतके गुण, आचार व स्वभाषसे परिचित रहनेवाले दूत-मित्रों द्वारा वशमें करे ॥ २५॥
शुक"विद्वान्ने कहा है कि 'राजाको शत्र-दूतका रहस्य जिसके द्वारा शत्र उन्नतिशील होरहा है, जानने के लिये वेश्याओं, दोनों तरफ वेतन पानेवाले तथा दूत-प्रकृतिसे परिचित व्यक्तियों द्वारा प्रयत्नशील रहना चाहिये ॥ १॥
विजिगीषको शव राजाके पास भेजे हुए लेखों-पत्रादि में चार बेष्टन व उनके ऊपर खगको मुद्रा (मुहुर लगा देनी चाहिये, जिससे वे मार्गमें न खुलने पावें || २४ ।।
इति दूतममुद्देश। -- .---.- • -- ----- ---- - . . तमा च शुक्रः- मन्तावसायिनो वेऽपि दुताना प्रभवम्ति च । प्रवश्यास्तेऽपि भूतानां स्वकार्यपरिसिरये ॥ ॥ २ तात्र पस्तिथ:-श्रोतम्यामि महीपेन वृतवाक्या यशेषतः । विजेनेा परित्यज्य सुशभान्यगुमान्यपि ॥ ॥ ३ तथा चएक:-तस्य यदहस्यं च तद्वेश्योभयवेतनः। तमस्ट्रीलंवा परिशे बेन शत्रः प्रसिदश्यति ॥1॥