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नीतियाक्यामृत
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गुपचरके वचनोंपर विश्वास, गुप्तचर-रहितकी हानि व उसका दृष्टांत द्वारा समर्थन क्रमशः
असति संकेते त्रयाणामेकवाक्ये संप्रत्ययः +॥२॥ अनयसो हि राजा म्यै परे चालिसन्धीयने !!६!!
किमस्त्ययामिकस्य निशि कुशलम् ॥७॥ अर्थ-यदि राजाको गुप्तचर द्वारा कही हुई बातोंमें भ्रम या सन्देह उत्पन्न होजाये, तो तीन गुप्तचरों की कही हुई एकसी बात मिलनेपर उसे प्रमाण माननी चाहिये ।।५।।
__ भागुरि विद्वान ने कहा है कि 'जब गुमचरों के बाक्य निश्चित (विश्वासके योग्य) न हों, तब राजाको तीन गुप्तचरोंकी कही हुई एकसी बात सत्य मान लेनी चाहिए ॥१॥'
निश्चयसे जिस राजाके यहां गुप्तचर नहीं होते वह स्वदेश और परदेश सम्बन्धी शत्रओं द्वारा आक्रमण किया जाता है, अतः बिजीगोषको स्वदेश-परदेशमें गुप्तचर भेजना चाहिये ।।६।।
चारायण विद्वान् ने भी कहा है कि 'राजाओंको वैद्य, ज्योतिषी, विद्वान्, स्त्री, संपेरा और शराबी आदि विविध गुप्तचरों द्वारा अपनी तथा शत्रु ओंकी सैन्यक्ति जाननी चाहिये ।।१।।
क्या द्वारपालके विना धनाढ्य पुरुषका रात्रिमें कल्याण होसकता है ? नहीं होसकता। उसीप्रकार गुप्तचरोंके बिना राजाओंका कल्याण नहीं होसकता ॥७॥
वर्ग, विद्वान् ने कहा है कि जिस प्रकार रात्रिों द्वारपाल के बिना धनाढ्यका कल्याण नहीं होता, उसीप्रकार चतुर गुप्तचरोंके बिना राजाका भी कल्याण नहीं होसकता ।।१।।
----- ---. .... ... .....-.---... ....-----... - --..--.. ... .... --- + असति संकेते नयाणामेकवाश्ये युगपत् सम्प्रत्ययः' इसमकार मूल प्रतियोंमें पाटान्तर है, किन्तु अर्थ-भेद नहीं।
नोट-उक्त सूत्रका यह अभिप्राय भी है कि जब राजा परिचित स्थानमें संकेत-शक्तिग्रह करके गुप्तचर मेले, तो उसकी कही हुई यात प्रमाण मान लेनी चाहिये परन्तु जहां विना संकेत किये ही भेजे, ऐसे अवसर पर पारितो. पिक-सोमसे गुप्तचर मिथ्याभाषण भी कर सकता है, इसलिये यहां तीनोंकी एकसी बात मिनेपर उसपर
विश्वास करना चाहिये। सम्पावक, तथा च भागुरि:-प्रसंफेतेन धाराणां यया वाक्यं प्रतिष्ठितम् । अपामापि तत्सत्यं विशेष पृथिवीभुजा ॥१॥ र तथा छ धारायणः-वैद्यसंवरसराचार्यश्चारे शये निज धनम् | वामाहिएडकोन्मतः परेषामपि भूभुजाम् ॥१॥ ३ तथा व वर्गः- या प्राहरिकार रानी में न जायते । चारैर्विमा म भूपस्य तथा शेयं विचरणः ॥ ॥