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नीतिषाक्यामृत
हारीत' विद्वानने भी कहा है कि 'राजाओंको उन पापियों-अत्यन्त भयानक अपराधियों को मार देना चाहिये, चाहे वे उनके कुटुम्बी होनेके कारण अवध्य-मृत्यु-दसके अयोग्य भी हों। क्योंकि पापियोंका नाश क्षणभरके लिये दुःखदायक होने पर भी भविष्य में पायाणकारक होता है. |१|
मंत्री, अमात्य और सेनाध्यक्ष आदि राज्याधिकारियों में से राज-दोष (क्रोध व ईया-प्रादि) और स्वयं किये हुए अपराधोंके कारण जिनकी जीविका (वेतनादि) नष्ट कर दीगई है, वे क्रोधी, जोभी, भीत
और तिरस्कृत होते हैं, उन्हें 'कृत्या के समान महाभयङ्करं जानना चाहिये। अर्थात् जिसप्रकार जारणमारद मंत्रों से अयथाविधि किया हुआ यश क्षुब्ध (अमन्तुए) होनेपर यज्ञ करनेवालेका घातक होता है, उसीप्रकार पृथक्करण (नौकरोसे हटाना) और अपमानादिसे क्षुब्ध-असन्तुष्ट हुए राज-कर्मचारी भी राज-घातक होते हैं । निष्कर्ष यह है कि नोतिम राजाको उन जुन्ध हुए अधिकारी घगसे सदा सावधान रहना चाहिये एवं पागेके सूत्रमें कहे हुए नैतिक उपायों से उन्हें वश करना चाहिये ॥१६४।।
नारद विद्वान्ने भी कहा है कि 'राजाको पूर्व में अधिकारी-पद पर नियुक्त किये हुए मंत्री प्रादि राज-कर्मचारियों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये-अपने वश में करना चाहिये, यदि वे राज-घातक नहीं हैं, तो उन्हें अपने २ पदोंपर नियुक्त कर देना चाहिये ॥शा' पूर्वोक्त इश्व राज-कर्मचारियों का वशीकरण व राजाका मंत्री-आदिके साथ वर्ताव क्रमशः
अनुत्तिरभयं त्पागः सस्कृतिश्च कृत्यानां वंशोपाया: A ॥१६॥
भयलोभविरागकारणनि प्रकृतीनां न कुर्यात ॥१६६।। मर्थ-पर्वोक्त छत्या समान राज्य क्षति करनेवाले कारण वश तुब्ध हुए. अधिकारियों (मंत्री व सनाध्यादि) को वश करनेके निम्न प्रकार उपाय हैं। १ उनकी इच्छानुकूल प्रवृत्ति करना (यदि वे पुनः अपने पदों पर नियुक्त होना चाहें, तो नियुक्त करना भावि) २ अभयदान (जीविकाके बिना पारिद्रयदोष से भयभीतोंको पुनः जीविका पर लगाना) ३ त्याग–अभिलषित धन देना और ४ सत्कार-तिरस्कतों का सम्मान करना।
विमर्शः-नीतिज्ञ राजाका कर्तव्य है कि वह कारण-वश सुब्ध हुए पर्योक्त कोधी, लोभी, भीत व विररात अधिकारियों में से क्रोधी और लोभी कर्मचारियोंको पूर्वकी तरह नौकरीसे पृथक् रक्खे क्योंकि उन्हें पुनः नियुक्त करने से उसकी तथा राज्यकी क्षति होनेकी संभावना रहती है, तथा जीविकाफे विना
___--...-... -- - -- --- ... ... ... - ----- ----- - -- १ सया च हारीतः-प्रममा अपि मारते ये तु पापा निजा थपि । तथाले च तेषां च पश्चात खूपसे भवेद ॥१॥ २ तथा नारदः-नोपेपणीयाः सचिवाः साधिकाराः कृताश्च ये । योजनायाः स्वकृत्ये ते न त् स्युषधकारिणः DIH A उक्त सूत्र सं० टी० पुस्तक में नहीं है, परन्तु मु.१० लि. मा प्रतियोंस संकलन किया गया है और
वास्तवमें प्रारयिक तवं क्रम प्राप्त भी है। संपादक--