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मन्त्रिसमुद्देश
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महाम्- प्रचुर सैनिकशक्ति सम्पन्न - शत्रु नहीं ठहर सकता पुनः हीनशक्तिवाला किसप्रकार ठहर सकता है ? नहीं ठहर सकता ॥ १ ॥
जिसप्रकार नदीका पूर वटवर्ती तृण ष वृक्षों को एक साथ उखाड़ कर फेंक देता है, उसीप्रकार शत्रु विनाश को जाननेवाला विजिगीषु भो अनेक सफल - श्रव्यर्थ - उपायोंसे महाशक्तिशाली व ही शक्तियुक्त शत्रुओं को परास्त कर देता है ।। १५४ ॥
गुरु' विद्वाने भी कहा है कि 'जिसप्रकार नदीका पूर तटवर्ती तृण च वृक्षोंको उखाड़ देता है, उसीप्रकार शत्रुओं से प्रियवादी बुद्धिमान् राजा भी शत्रुओं को नष्ट कर देता है ॥ १ ॥
नैतिक मनुष्यको न्याययुक्त योग्य वचन बच्चेसे भो ग्रहण कर लेना चाहिये || १५५ ॥
विदुर' विद्वान्ने भी कहा है कि 'जिसप्रकार धान्यकी ऊबी बटोरनेवाला पुरुष उसे खेतसे संचय कर लेता है, उसीप्रकार चतुर मनुष्यको भी बच्चे की सार बात मान लेनी चाहिये, उसे छोटा सममकर उसकी न्याय युक्त बाकी अवहेलना (तिरस्कार) नहीं करनी चाहिये || १॥'
उक्त बातका दृष्टान्तमाला द्वारा समर्थन व निरर्थक वाणीसे बक्ताकी हानि
रवेरविषये किं न दीपः प्रकाशयति ॥६॥
अन्पमपि वातायनविवर' बहूनुपलम्भयति ॥१५७||
पतिंवरा इव परार्थाः खलु वाचस्ताश्च निरर्थक प्रकाश्यमानाः शपयन्त्यवश्यं जनयितार ॥ १५८ ॥
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अर्थ - अपर सूर्य प्रकाश नहीं है, वहां क्या दीपक पदार्थोंको प्रकाशित नहीं करता ? अवश्य करता है । उसीप्रकार ज्ञान के अभाव में बालक या मख पुरुषभी न्याय- युक्त बात बोल सकता है, अतः उसको कही हुई युक्तियुक्त बात शिष्ट पुरुषों को अवश्य मान लेनी चाहिये || १५६ ||
जिस प्रकार झरोखा - रोशनदान - छोटा होनेपर भी गृहवर्ती बहुत से पदार्थोंको प्रकाशित करवा है, उसीप्रकार बालक या अश भी नैतिक बात कह सकता है, अतः शिष्यों को उसकी नीति-पूर्ण बात स्वीकार करनी चाहिये || १५७ ||
हारीस" विद्वान ने भी कहा है कि 'जिसप्रकार छोटासा रोशनदान दृष्टिगोचर हुआ बहुतसी बस्तुएँ प्रकाशित करता है, उसीप्रकार बालक या अशद्वारा कहूं हुए युक्तियुक्त वचन भी लाभदायक होते हैं ||१||
१ तथा गुरुः- पार्थिवो सुगा: मालापयेत् सुधीः । नाशं नयेच्च तारजान् सिन्धुपूरषत् ॥ १॥ संशोधित २ सा विदुरः लघु मत्वा मत्रापेत बाकाच्चापि विशेषतः । मत्सारं भवति तद्माच शिलाहारी शिखं यथा ॥१५ ३ तथा द्वारी गाविवरं सूक्ष्मं यद्यपि स्याद्विलोकित' प्रकाशयति यसरि बालम जस्पतम् ॥१॥७