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नीतिशास्यामृत
सर्वान् गुणान् निहन्त्यनुचितज्ञः ॥ १३६ ।।
परस्पर मर्मकथनयात्मविक्रम एष All १४० ॥ अर्थ-अस्यम्त क्रोध करनेवाले मनुष्यका ऐश्वर्य अग्निमें पड़े हुए नमकके समान सैकड़ों प्रकारसे न होजाता है ।। १३८॥
अषिपुत्रक विद्वान ने भी कहा है कि 'जिसरकार अग्निमें पड़ा हुआ नमक नष्ट होजाता है, उसा प्रकार अत्यन्त क्रोधी राजाका ऐश्वर्य नष्ट होजाता है ।। १ ।।
योग्य अयोग्यके विचारसे शुन्य पुरुष अपने समस्त झानानि गुणों को नष्ट कर देता है ॥१३॥
नारद' विद्वान् ने भी कहा है जिसप्रफार नप सक पुरुषको युवती स्त्रियाँ निरर्थक हैं, उसीप्रकार समस्त गुणोंसे विभूषित पुरुष भी यदि समयानुकूल कर्त्तव्यको नहीं जानता, तो उसके समस्त गुण निरर्थक होजाते हैं ॥१॥
जो पुरुष परस्परको गुप्त बात कहते हैं, वे अपना २ पराक्रम ही दिखाते हैं। मारांश यह है कि जिसकी गुप्त बात प्रकट कीजाती है, वह भी ऐसा ही करनेको तत्पर हो जाता है। अत एव के दोनों दूसरों के समक्ष अपना पराक्रम दिखाकर अपनी हानि करते हैं ।। १४० ॥
- जैमिनि विद्वान्ने भो कहा है कि 'जो मनुष्य लड़ाई-झगड़ा करके दूसरेका गुप्त रहस्य प्रकट करदेता है, तो दूसरा भी इसके गुप्त रहस्यको प्रकट किये बिना नहीं रहता; अत एव नैतिक पुरुषको किसीका गुप्त मंत्र नहीं फोड़ना चाहिये ॥ १॥' शशुओंपर विश्वास करनेसे हानि
तदजाकपाणीयं यः परेषु विश्वासः ॥ १४१ ॥
था ऋषिकपुत्रका-अतिक्रोधो महापाबः प्रभुत्वस्य विनाशकः । सपश्चस्य यथा वहिमध्ये निरसितस्य च ॥१॥ १ सवार नारदः-गुचैः सर्वैः समेतोऽपि वेति कालोचित न च । या वस्य गुणा सर्वे यथा घरतस्य योषितः ॥१॥ A परस्य मर्मथनमात्मविक्रमः' इसप्रकार मु० म० प्रतिमें भार 'परस्परमर्मचनमारमविक्रमः' इसप्रकार पूना गबने.
मामबरीकी इ० कि.मू. प्रतियों में पाठान्तर है, इसका अर्थ यह है कि जो ममुष्य अपनी गुप्त वात दूसरेसे कह देवा है, या उसके लिये अपने आपको पेंच देता है। क्योंकि गुप्त बात कहनेवारको उससे हमेशा यह बर बना रहता है कि यषि पह मुझसे विरद होनापगा, तो मेरे मम्त्र-गुप्त रहस्य--को फोबकर म में मरमा रावेगा अथवा मुमे अधिक हानि पहबायगाप्रत एव उसे सबा उसकी माज्ञानुकूल बनना पचता है। इसलिये इसरेको अपना म बस्य प्रकट करना उसे अपनेको बेच देनेके समान है। निष्कर्षः-प्रतः नैतिक पक्ति अपने गुप्त रहस्यको सदा गुप्त रक्खे । वथा च मिति:-परस्य धम भेदं करते कलादाश्रयः । तस्य सोऽपि कोरयेव तस्माम्मन मेदवेद . .