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ॐ नीतिवाक्यामृत *
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भागरि विद्वानने भी उक्त बातका समर्थन किया है कि जो विद्वान विद्याको पदकर अपनी आत्माको सुखमें प्रवृत्त और दुःखोंसे निवृत्त करता है उसकी बे विद्याएँ है और इससे विपरीत ओ विद्याएँ है वे केवल कष्ट देनेवाली मानी गई हैं ॥शा' मग राजविद्यानों के नाम और संख्याका कथन करते हैं:
भान्वीचिकी प्रयी वार्ता दण्डनीतिरिति चतस्रो राजविधाः । ५६।। अर्थः-राजविद्याएँ चार है, भान्धीक्षिकी, त्रयी, वार्ता और दण्डनीति ।
भान्वीक्षिकी जिसमें अध्यात्मवत्व-यात्मतत्व तथा उसके पूर्वजन्म और अपर जन्म आदिको अमान कियों का निशि की गई उसे 'पान्तसिजी विद्या कहते हैं इसे दर्शनशास्त्र-न्यायशास्त्र भी कहते हैं।
त्रयी:-(परणानुयोग शास्त्र)जिसमें प्रामण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार वर्षों तथा ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ और यति इन चार भाभमोंके कर्तव्योंका निर्देश किया गया हो एवं धर्म और अधर्मका स्वरूप वर्णन किया गया हो उसे 'त्रयी' विधा कहते हैं इसका दूसरा नाम 'घाचारशास्त्र' भी है।
वार्ता:-जिस लौकिक शास्त्रमें प्रजाजनके जीविकोपयोगो (जीवननिर्वाहके साधन-असि-सागधारण करना, मषि-लेखनकला, कृषि खेतीकरना, विद्या,वाणिज्य व्यापार और शिल्प-चित्रकला-) कर्तव्योंका विवेचन किया गया हो उसे 'वार्ता' विद्या कहते हैं।
पएनीति:-जिसमें प्रजाजनोंकी रखाके लिये दुओं-प्रजापीबक भावतापियों के निमह (बड देने)का विधान हो इसे 'दरसनीति' कहते हैं।
इसप्रकार भान्वीक्षिकी, त्रयी, बार्ता और दण्डनीति ये चार राजविद्याएं हैं ॥१६॥ प्रय भान्वीक्षिकी विद्या पढ़नेसे होनेवाले लाभका निरूपण करते हैं:
भधीयानो सान्दीपिकी कार्याकार्याणां बलाबलं हेतुभिर्विचारयति, व्यसनेषु न विपति, नाम्पुदपेन विकार्यते समधिगच्छति प्रज्ञावास्यवैशारणम् ॥७॥
भर्षः-भान्वीक्षिकी विद्या-पर्शनशास्त्र का वेचा विद्वान् प्रवल युक्तियों के द्वारा कक्षम्य (महिसा और ब्रह्मचर्य भावि)को प्रधान या हितकारक और अकर्मन्य (मद्यपान भौर परकमत्रसेबन भावि) को भानपान-सुखको उत्पन्न करनेकी शक्तिसे रहिस-पर्वात् अहितकारक निरषय करता है एवं विपत्तिमें विषाद-सद-और सम्पत्ति विकार--मद और हर्ष-नहीं करता तथा सोचने विधारने और बोलने चतुराई प्राप्त करता है . तपाच मारि:यस्तु विद्यामधीत्याच हितमात्मनि संचयेत् ।
प्रतिं नाशयेद्विचःस्वारचान्याः क्लेण्डाः मता: 10 १ 'समधिगच्छति च प्रज्ञावान् बेसार इसप्रकार मु० मू• पुस्तक और गबन जायगे पूनाको .लि.. दोनों पुस्तकोंमें पाठ है, जिसका अर्थ यह है कि प्रायोशिकी विद्याका विद्वान् चतुराई प्राप्त करता है।