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मन्त्रिसमुद्देश
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मापसे सेवकको लाभ --
स्वामिनाधिष्ठितो मेोऽपि सिंहायते ||४८||
अर्थ-साधारण (कमजोर) मेढ़ा भी अपने स्वामीसे श्रधिष्ठित हुआ शेर के समान श्राचरण करता सवान होजाता है, फिर मनुष्यका तो कहना ही क्या है । सारांश यह कि साधारण सेवकभी अपने सहायताको प्राप्तकर वीर होजाता है ॥४७॥
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मंत्र- गुप्त सलाह के समय मंत्रियोंका कर्त्तव्य
मंत्रकाले विगृप विवाद: स्वैरालापश्च न कर्त्तव्यः ॥४६॥
'विज्ञान ने कहा है कि 'जिसप्रकार साधारण कुत्ता भी अपने स्वामीको प्राप्तकरके शेरके भर करता है, उसीप्रकार साधारण कायर सेवक भी अपने स्वामीकी सहायतासे वीर हो
धर्म-मंत्रियों को मंत्रणा के समय परस्पर में कलह करके वाद-विवाद और स्वच्छन्द बातचीत आदि) न करनी चाहिये। सारांश यह है कि कलह करने से वैर-विरोध और स्वच्छन्नशुन्य-वार्तालाप से अनादर होता है, अतएव मंत्रियोंको मंत्रकी वेलामें उक्त बातें न चाहिये ॥४६॥
विद्वान ने कहा है कि 'जो मंत्री मंत्र-वेला में वैर-विरोधके उत्पादक वादविवाद और हंसीमादि करते हैं उनका मंत्र कार्य सिद्ध नहीं होता ॥१॥
"प्रधान प्रयोजन—फल -
अविरुद्वैरस्वैरं विहितो मंत्रो लघुनोपायेन महतः कार्यस्य सिद्धिमंत्रफलम् ॥ ५० ॥
परस्पर वैर-विरोध न करनेवाले - प्रेम और सहानुभूति रखनेवाले और हंसी-मजाक (युक्ति व अनुभव-शून्य) वार्तालाप न करनेवाले (सावधान) मंत्रियोंके द्वारा जो मंत्रणा जाती है, उससे थोडेसे उपाय से उपयोगी महान कार्यकी सिद्धि होती है और यही (रूप उपायसे महान सिद्धि करना) मंत्रका फल या माहात्म्य है । सारांश यह कि थोडे उपायसे थोड़ा कार्य और महान से महान कार्य सिद्ध होना, यह मंत्रशक्तिका फल नहीं है, क्योंकि वह तो मंत्रणा के बिना भी हो
परन्तु थोडेसे उपाय द्वारा महान कार्यकी सिद्धि होना यही मंत्रशक्तिका माहात्म्य है ||५०|| भारत विज्ञानने कहा है कि 'सावधान (बुद्धिमान) राज मंत्री एकान्त में बैठकर जो षाड्गुण्ग-संधि
:-स्वामिनभिति भृत्यः परस्मादपि कातरः । स्वापि सिंहायते यक्षिजं स्वामिनमाश्रितः ॥२॥ - विरोधवाक्यस्यानिमंत्रकाल उपस्थिते । ये कुर्युर्मन्त्रिस्तेषां मंत्र कार्य न सिद्ध्यति ॥ १ ॥ -साभागाश्च मे मंत्रं चकुरेकान्तमाश्रिताः । साधयन्ति नरेन्द्रस्य कृत्यं क्लेशदिवसिंतम् म म विंग महतः कार्यस्य सिद्धि मंत्रफलम्' ऐसा मु० मूत्र व मित्र म्० प्रतियों में पाठ है, परन्तु विशेष अहीं है।