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नासिवाक्यामृत
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शुक्र' विद्वान्ने कहा है कि राजाको सहायक पुरुष-श्रेष्ठोंके बिना धन नहीं मिलता; इसलिये मम्पत्तिके अभिलाषी राजाओंको सदरा वीर पुरुषोंका संग्रह करना चाहिये ॥ १" उक्त यातका समर्थन-सहायक पुरुषों को धन देनेसे लाभ---
सत्क्षेत्रे धीजमिव पुरुषेयूप्त कार्य शतशः फलति * ॥ ८६ ॥ अर्थ--उत्तम उपजाऊ खेतमें बोए हुए पीक्षकी तरह सत्पुरुषों (महायक कार्यपुरुष-मंत्री, सेनापति और अर्थ-सचिव श्रादि) को दिया हुआ धन निस्सन्देह भनेक फल देता है-- अनेक प्रार्थिक लाभ-वगैरह प्रयोजनोंको सिद्ध करता है। सारांश यह है कि जिसप्रकार उपजाऊ पृथिवीमें घोर गये धान्यादिके शोज प्रचुर धान्य-राशिको उत्पन्न करने है, उमीप्रकार मंत्री, अमाम्य, पुरोहित और सेनापत्ति प्रादि सहायक पुरुषों को दिया हुआ धन भी प्रचुर धनराशिको उत्पन्न करता है। अप्तणय विजिगीषु राजा या नैतिक पुरुष सहायक सत्पुरुषों के संग्रहकी अपेक्षा धनको अधिक न समझे ।। ८६ ॥
जैमिन विद्वान्ने भी कहा है कि 'उत्तम मनुष्यको दिया हुआ धन और सौंपा हुआ कार्य उपजाऊ भूमिमें बोई हुई धान्य के समान निस्मन्देह सैकड़ों फल ( असंख्य धन-आदि) देता है ॥ १॥ कार्य पुरुषोंका स्वरूप
बुद्धावर्थे युद्धे च ये सहायास्ते कार्य पुरुषाः ॥ ७ ॥ अर्थ-बुद्धि, धन और युद्ध में जो सहायक होते हैं ये कार्य पुरुष है । सारांश यह है कि ग़जात्रों को राजनैतिक बुद्धि प्रदान करनेवाले प्रधान मंत्री और पुरोहित आदि, सम्पत्तिमें सहायक अर्ध-संधिव वगैरह और युद्ध में सहायक सेनाचिय-प्रादि इनको 'कार्यपुरुप' कहते हैं, अन्यको नहीं ।। ८७ ॥
शौनक' विद्वानने कहा है कि 'जो राजाको कर्तव्य (संधि-विप्रहादि) में अज्ञान होनेपर बुद्धि, संकट पाने पर धन एवं शत्रुओंसे लोहा लेनके समय सैनिक शक्ति देकर उसकी सहायता करते हैं, उन्हें (प्रधान मंत्रो, अर्थसचिव और सेनासचिव-श्रादि को) 'कार्यपुरुष' माना गया है ।। १ ।' जिस समयमें जो सहायक होते हैं..
खादनवारायां को नाम न सहायः ॥ ८ ॥ प्रथ-भोजन के समय कौन सहायक नहीं होता ? सभी सहायक होते हैं। सारांश यह है कि
। तथा च एका वा पुरुषेन्दारणा धन भूपस्य आयते । तस्माइमाविमा कार्यः सर्वदा वीरसंग्रहः ॥ .n * 'सुक्षेत्रेषु बोलमित्र कार्यपुस्यूतं धन शतशः कमति' इसप्रकार का मुन्मू० व हसिम• पतियोंमें पाठ है, सन्तु
अर्थ-मेर कुछ नहीं। । तथा जैमिनिः-सारे योजित कार्य धन र शतदा भवेत् । सुखेने वापिन यत् सस्थं शादर्सशर्थ ॥ {सा शौनकः--मोहे यन्ति ये बुद्धिमर्थे कृष्ट्र स्था धनं । रिसंघे पहायचं ते कार्यपुरुषा मला In * 'बादमवेखायो नको नाम *म्प न महाय, या मु. मूत्र पुस्तक में पाट है, परम्नु अर्ध-भेद कुछ नहीं।