________________
मन्त्रिसमुदश
शाहीन मनुष्य की कड़ी आलोचना
गुरुहीन धनुः पिंजनादपि कष्टम् * Rel 4-सिप्रकार बोरी-शून्य धनुपको शत्र पर प्रहार करने के लिये चदाना व्यर्थ है, पसीप्रकार जो विकान, सदाचार और बीरता-प्रभृति गुणोंसे शून्य (मूर्स) है, उमको केवल स्वांस लेने मात्रसे शाम है। कोई लाभ नहीं-उसका जन्म निरर्थक है ॥ll
मनि विद्वान् ने भी कहा है कि 'गुण-शून्य राजा डोरी-रहित धनपके समान निरर्थक है ।।६।।' F -मंत्रोके महत्वका कारण
चप इव मंत्रिणोऽपि यथार्थदर्शनमेवात्मगौरवहेतुः ॥१०॥ -जसप्रकार नेत्रकी सूक्ष्मदृष्टि उसके महत्व प्रशंसाका कारण होती है, उसीप्रकार राज मंत्री पारिटि (सम्षि-विप्रह-आदि कार्य-साधक मंत्रका पधाज्ञान) उसको राजा द्वारा गौरव प्राप्त परख होती है ॥१०॥
विद्वान् ने भी कहा है कि 'जिसप्रकार सूक्मणि-युक्त नेत्रोंको लोकमें प्रशंमा होती है, उसीपार्व मंत्रणा पतुर मंत्रीकी भो राजा द्वारा प्रशंसा कीजाती है ।।१।।' -समाहो अयोग्य पक्ति--
शस्त्राधिकारिणो न मंत्राधिकारिणः स्युः ॥१०॥ ई-स्त्र संचालन करनेवाले केवल वीरता प्रकट करनेवाले–हत्रिय लोग मंत्रणा करने की है ॥१०॥ मिनि विद्वान ने कहा है कि 'राजाको मंत्रणा निश्चय करने के लिये त्रियों को नियुक्त नहीं करना नोकि केवल युद्ध करनेकी सलाह देना जानते हैं ॥१॥'
बावका समर्थन
पवियस्प परिहरतोऽप्यायात्युपरि भंडन ॥१०॥ ह -नियको रोकने पर भी केवल कलह करना ही सूझता है, अतः उसे मंत्री नहीं
पाहिले १०२॥
बिमारपिकनिहप्टम् । पेसा पाठान्तर मु. ५० प्रतिमें है। बपि ईमेदब नहीं , की सं० से. पुस्तकका पाठ पड़ा है। सम्पादकनिल-गुबीनाव घो राणास म्परिकापरिषत् ॥३॥ -माबोकस्म मेनस पपा शंसा प्रजायते । मंत्रियोऽपि सुत्रस्य दयामा पसंभवा ।। -नाने मरम्माः त्रियाः पक्षिणीभुजा । यतस्ते पर मंत्र प्रपश्यन्ति स्पोजदम् ॥१॥