________________
नोतिषाक्यामृत
..
..
.......aasnad......
front......
समझ जाते हैं। अथवा राजा जिस पुरुषका निग्रह (दंड देना) और अनुप्राह करता है, यह मंत्रियों . के द्वारा किया हुआ ही समझना चाहिये। अर्थात मंत्रियों को पृथक रूपसे उस पुरुषका निमा अनुग्रह नहीं करना चाहिये । अन्यथा (यदि मंत्री लोग, रामाकी अवज्ञा करके उस पुरुषका अलगसे निग्रह या अनुग्रह करेंगे) 'ये मेरे राज्याधिकारको छोकना चाहते हैं। ऐसा समझर राजा उसपर विश्वास नहीं करेगा ॥६||
हारीस' विद्वामने कहा है कि क्योंकि मंत्रीगण मदा राजाके हितैषी होते हैं। अतएव राजाने उन्नतिसे मंत्रियोंकी उन्नति होती है एवं राजाके ऊपर 3 पड़नेसे मंत्रियों को भी कष्ट उठाना पड़ता है या कर्तव्य-परायण मंत्रियोंके कार्योमें सफलता न होनेका कारण
स देवस्यापराधो न मंत्रिणां यत् सुघटितमपि कार्य न घटते ॥७॥
अर्थ-जो मंत्री राज-कार्य में सावधान होते हैं, तथापि उनके द्वारा अच्छी तरह मंत्रणापूर्वक किया हुआ भी कार्य अब सिद्ध नहीं होता, उसमें उनका कोई दोष नहीं, किन्तु राजाके पूर्वजन्म संबंधी भाग्यका ही दोष समझना चाहिये ।।५।।
भार्गव विद्वान ने कहा कि राजा के कार्यमें सावधान और हितैषो मंत्रियोंका जो कार्य सिद्ध नहीं होता, उसमें उनका कोई दोष नहीं. किन्तु भाग्यका ही दोष समझना चाहिये ।।१।। राजाके कन्यका निर्देश
स खलु नो राजा यो मंत्रियोऽतिक्रम्य वर्तत ॥५॥ अर्थ-जो राजा मंत्रियोंकी बातको उल्लकन करता है-न उनकी बात सुनता है और न पाचरण करता है, वह राजा नहीं रह सकता-वसका राज्य क्रमागत होने पर भी नष्ट हो जाता है ।।५।।
भारताज' विद्वान्ने कहा है कि 'जो राजा हितैषी मंत्रियों की बात को नहीं मानता, वह अपने पिता और पावासे चले आये क्रमागत राज्यमें पिरकाल तक नहीं ठहर सकता-उसका राज्य नष्ट हो जाता है । पुनः मंत्रणाका माहात्म्य
सुविवेचितान्मंत्रालवत्येव कार्यसिद्धिर्यदि स्वामिनो न दुराग्रहः स्यात् ।।५६॥ अर्थ-यदि राजा दुराग्रही-हठी न हो तो अच्छी तरह विचारपूर्वक किये हुऐ मत्रसे अवश्य कार्य-सिद्धि होती है। सारांश यह कि जब मंत्रिमंडल अपनी सैनिक शक्तिको हद और शव की सैनिक शक्ति चोख देखता है, एवं देश कालका विचार करके सन्धि-विप्रहादि कार्य प्रारम्भ करता है,
1 तथा रबारीत:-राज्ञः पुष्ट्या भवेत् पुष्टिः सचित्रानो महसरा । यमन म्यसनेनापि तेन तस्य हितार ॥शा २ तथा च भार्गव:-मत्रिणां सावधानानां यत्कार्य न प्रसिद्धपति । तत् स देवस्य दोषः स्थान तेषां मुहिवैषिणाम् । तभा भारद्वाज-यो गाजा मंत्रिणा वाग्यं न करोति हितैषिणा । न म निप्लेरिधरं राज्ये पिनपैतामहेपि ॥१॥