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* नीतिवाक्यामृत
बेतीकी फसल के समय धान्य-संग्रह न करने वाले राजाकी हानि:
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विसाध्यराज्ञस्तत्रपोषणे नियोगिनामुत्सवो महान् कोशक्षयः ||all
अर्थः- जो राजा सैनिकोंके भरण-पोषण करनेके लिये खेतीकी फसलके मौकेपर धान्यादिका संग्रह नहीं करता, उसके राजकीय कर्मचारियों-मंत्री आदि को विशेष आनन्द होता है ये लोग धान्यारि खरीदकर उसे बहुत तेजभावका बताकर गोलमाली करके बहुत धन हड़प कर जाते है तथा राजाका विशाल खजाना नष्ट होजाता है ।
नारद' बिद्वानने लिया है कि 'जो राजा शरद और मीष्म ऋतु अनकी दोनों फसलोंके समय - सैना वगैरह के निर्वाह के लिये मन्त्रका संचय नहीं करता, किन्तु स्वा मोल खरीदता रहता है उसका खजाना नष्ट होजाता है गा
निष्कर्ष :- इसलिये नीतिज्ञ राजाको विशाल सेनाके भरण-पोषण के लिये फसल के मौकेपर धान्यका संग्रह कर लेना चाहिये ||४||
आमदनी के बिना केवळ सदा सर्व अवाले मनुष्यकी छात्र
free freeport मेरपि चीयते ||५||
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अर्थ:- जो हमेशा संचित धन खर्च करता रहता है परन्तु नया धन बिल्कुल नहीं कमाता, विशाल भी खजाना धीरेर नष्ट होजाता है। खजाना तो दूर रहे परन्तु विशाल सुमेरु पर्वत में से भी हमेशा सुवर्ण निकाले जानेपर वह भी नष्ट हो जाता है फिर राज-कोशका तो कहना ही क्या है ? अर्थात् वह तो निश्चित ही नष्ट होजाता है ||५||
शुक्र विज्ञानने किया है कि 'जिस मनुष्यको चार मुद्राओं रुपयोंकी दैनिक आमदनी है और साढ़े पाँच मुद्राओंका खर्च है, वह धन-कुवेर होनेपर भी दरिद्रताको प्राप्त होता है ||११|
धान्य-संग्रह न करके अधिक व्यय करनेवाले राजाकी हानि :---
रात्र सदैव दुर्भिक्षं यत्र राजा विसाधयति || ६ ||
अर्थः-- जो राजा अपने राज्यमें धान्यसंग्रह नहीं करता और अधिक व्यय करता है, उसके यहाँ सदा अकाल रहा करता है। क्योंकि उसे अपनी विशालसेना के भरण-पोषण करनेके लिये अधिक की आवश्यकता हुआ करती है; इसलिये जब वह राज्यमेंसे धान्य खरीद लेता है, तब उसकी प्रजाको अकाल का दुःख भोगना पड़ता है।
1 तथा च नारदः :- श्री शरदि यो नान्यं संगृह्णाति महीपतिः । नित्यं मूल्येन गृक्रांति तस्य कोशक्षयो भवत् ॥१॥ २ तथा व शुक्र :- श्रागमे यस्व चवारि निर्गम सापंचमः । स दरिद्रत्वमाप्नोति वियोगी स्वयं यदि ॥3॥