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नीविषाक्यामृत
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कर्मचारियों द्वारा रिश्वतमें इकट्ठा किया हुआ धन वहाँकी जनता और वाहरसे आयेहुए लोगोंको निर्धनदरिद्र बना देता है ।।शा बस्तुओंका मूल्य निर्धारित करनेके विषय में
देश-काल-भांडापेक्षया या सर्वार्षो भवेत् ॥१५॥ अर्थ:-समस्त वस्तुओं अन्न, वस्त्र और सुवर्ण-आदि पदार्थों का मूल्य देश, काल और पानेमानकी पोशार होगः नाहिये
भावार्थ:-जो राजा यह जानता है कि मेरे राज्यमें या अमुक देशमें प्रमुफ षस्तु उत्पन्न हुई है ? या नहीं ? इसे 'देशापेक्षा' कहते हैं । एवं इस समय दूसरे देशोंसे हमारे देशमें अमुक वस्तु प्रविष्ट हो सकती है अथवा नहीं ? इसे 'कालापेक्षा कहते हैं। राजाका कर्तव्य है कि वह उक्त देश-कालादिकी अपेक्षाका झान करके समस्त वस्तुओं का मूल्य निर्धारित करे, जिससे व्यापारी लोग मन-चाहा मूल्य बढ़ाकर प्रजाको निधन-दरिद्र न बना सकें ॥१० व्यापारियोंके छल-कपटपूर्ण व्यवहार में राजाका कर्सन्यः
• पण्यतुलामानवृद्धौ राजा स्वयं जागृयात् ।।१६।।
अर्थः-राजाको उन व्यापारियोंकी जाँच-पड़ताल करनी चाहिये, जो कि बहुमल्यवाली वस्तुओंमें अल्प मूल्यथाली वस्तुओं की मिलावट करते हों, दोप्रकारकी तराजुएं रखते हों तथा नापने-तोलनेके बाँटों श्रादि (प्रस्थ और गुञ्जादि ) में कमी-वेशी करते हों।।
शुक्र चिद्वानने लिखा है कि 'यणिक लोग बहुमल्यवाली वस्तुमें अल्पमूल्यवाली वस्तुकी मिजावट करके दो प्रकारकी वराजुएं रखकर तथा नापने-तोलनेके आँटों आदिमें कमी-अशी करके भोले भाले मनुष्यों को ठगते रहते हैं । अतएव राजाको उनकी देख-रेख-जांच पड़ताल करनी चाहिये ॥१॥
निष्कर्षः-राजाको व्यापारियोंके द्वारा किये जानेषाले छल-कपट-पूर्ण व्यवहारों-बेचने या खरी पनेकी वस्तुओंको विविध उपार्योसे कमती-बढ़ती देना आदि के संशोधन करनेमें सदा सावधान रहना पाहिये जिससे प्रजाको कष्ट न हो ॥१६।। राजाको वणिक लोगोंसे सावधान न रहनेसे हानिः
न पणिग्भ्यः सन्ति परे पश्यतोहराः ॥१७॥ अर्थः-वणिक लोगोंको छोड़कर दूसरे कोई प्रत्यक्ष चोर नहीं हैं।
भावार्थ:-वास्तविक चोर तो पीठ-पीछे चोरी करते हैं, परन्तु वणिक लोग लोगों के सामने नापनेतोलनेके गज और बाटोंमें कमी-वेशी करके और बहुमूल्यवाली वस्तुमें अल्पमूल्यषाली वस्तुकी मिलावट करके ग्राहकोंको ठगते हैं; इसलिये प्राचार्यश्रीने उन्हें प्रत्यक्षचौर' कहा है, अतएव राजाको उनकी कड़ी निगरानी रखनी चाहिये ॥१७॥
१ उक्त पाठ मु म पुस्तकसे संकलन किया गया है; क्योंकि सं० टी० पुस्तकमें दशकालभाडापेक्षया यो घाइयों भवेत्' ऐसा गट है जिसका अर्थ-समन्वय औक नहीं होता था। समादक:
२ तथा च शुक:-भाएइसंगासुलामानादीनाधिस्यावाणिग्जनाः । वंचयन्ति अन मुन्ध तद्धि शेयं महीभुजा ॥३॥