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* नीतिवाफ्यामृत
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अकड़ीको हाँडीमें एक ही बार पदार्थ पकाया जासकता है दूसरी बार नहीं; क्योंकि फिर
भावार्थ:-सीप्रकार जिस राज्यमें दूसरे देशको वस्तुओंपर अधिक टैक्स लगाया जाता हो और भवाने थोड़ा मूल्य देकर लूट-मार करते हों, उसमें फिर दूसरे देशोसे माल नहीं पासकता ॥२॥
विद्वानने लिखा है कि जिस राज्यमें टेक्स बदाया जाता है और मूल्य घटा दिया जाता है, स्तुवनेषाने वणिक-जन स्वप्नमें भी प्रवेश नहीं करते ।।शा' Isस स्वाममें बाणिज्य--इयापार नष्ट होजाता है उसका यणेनः
तुलामानयोरव्यवस्था व्यवहार दूपयति ॥१३॥ जिस राज्यमें तराज, तोलने के बाँट ( गुञ्जादि) और नापनेके पात्र--द्रोणादि-योषित नही रखे जाते-जहाँपर वणिक जन इससे यस्तु खरीदने के लिये अपनी तराजू और बाँटोंको और ऐसे समय लोहे करते हैं, घडाँपर निष्प गयोमा व्यवहार—रखीवना-बेचना-नत्र होजाता है।
भावार्थ:-जहाँपर व्यापारीगण स्परीदत-बेचते समय अपने तराजू और पाँटों वगैरहको बड़ा बनते हैं, वहाँपर प्रजाको कष्ट होता है, इसलिये राजाको उनकी पूर्ण निगरानी रखनी चाहिये ॥१शा व विद्वान्ने लिम्या है कि 'जिस राज्यमें तराजू और तोलने नापनेके बॉट च-छोटे रकाये जाते पर व्यापार नहीं होता ||१|| भापारियों द्वारा मूल्य बढाकर संचित किये हुए धनसे प्रजाकी हानिः
___ बचिजनकृतोऽर्थः स्थितानागन्तुकाश्य पीड़यति ॥१४॥ -जिसके राज्यमें व्यापारी-गण वस्तुओं-पम-वस्त्रादिका मूल्य स्वेच्छापूर्वक बढ़ाकर करते हैं, इससे यहाँको प्रजाको और बाहरसे आये हुए लोगोंको कष्ट होता है-दरिद्र होजानेसे
भावार्थ:-जहाँपर व्यापारी लोग मन-माना मूल्य बढ़ाकर वस्तुओको बेचते हैं और कमसे कम खरीदते हैं, यहाँकी जनता दरिद्र होजाती है, अतएव राजाको इसकी ठीक व्यवस्था करनी शा ' विज्ञामने कहा है कि व्यापारियों द्वारा मूल्य बढ़ाकर संचित किया हुआ और राज
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यांच शुरू-शुरुकदिवे अत्र वलान्यं निपात्यते । स्यप्नेऽपि तत्र न स्थाने प्रविशेद् भाण्डविक्रयी ॥१॥ मनन वर्ग:-गुरुरूप च लघुत्न च तुलामानसमुद्भवम् । द्विप्रकार भवेद्यत्र पाणिज्यं तत्र नो भवेत् ॥७॥
'पिजमहतोऽर्थः' इत्यादि मु. मू० प्रतिमें पाट है परन्तु अर्थभेद कुछ नहीं है तथापि या पाट • पाठसे उत्तम है क्योंकि इसने निस्सन्देद सीधा अर्थ-वस्तुश्चोका मध्य निकल पाता है। या हात:-णिजनकृतो योगाऽनुज्ञातश्च नियोगिभिः ।भूपर प पीयेत् मोऽन तत्स्थानागभानामि ।।१!!