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ॐ नीतिवाक्यामृत *
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मारद' विधान्ने लिखा है कि जिस देशमें राजा अकाल पड़नेपर अपने खजानेकी सम्पत्तिसे सरीषकर मजाको देता है, तब उसकी प्रजा अकाल के दुःखसे पीड़ित नहीं होती ॥१॥ निष्कर्ष:-इसलिये नीतिमान् राजाको अधिक धान्य-संग्रह करना चाहिये ।।६।। राबाको धनकी लालसा होनेसे हानिः
समुद्रस्य पिपासायां कुतो जगति जलानि ? ॥७॥ भर-समुद्रको प्यासे रहनेपर संसारमें जल किस प्रकार पाये जासकते हैं ? नहीं पाये जासकते ।
भाषा-शास्त्रों में उल्लेख है कि लवण समुद्र में गंगा और सिंधु आदि नदिए अपनी १४ हजार सावक वियों समेत प्रवेश करती हैं, ऐसी विशाल जल-राशिके होनेपर भी यदि समुद्र प्यासा रहे, तो
संसारमें जल ही नहीं रह सकते; क्योंकि समुद्रकी प्यासको दूर करनेके लिये इससे अधिक जलसोही पाई नहीं जाती। उसी प्रकार राजा भी यदि प्रचुर धन-राशिकी लालसा रखता हो-प्रजासे सकले भागसे भी अधिक कर ( टेक्स) लेनेकी लालसा रखता हो-तो फिर राष्ट्रमें सम्पत्ति किस भारदसती हैं। नहीं रह सकतो।
विमर्श:-अधिक टेक्स बदानेसे समस्त राष्ट्र दरिद्र होकर नष्ट-भ्रष्ट होजाता है। अतएव न्यायराणाको उचित रही प्रजासे नेना चाहिये जिससे राष्ट्रकी श्रीवृद्धि होती रहे ॥७॥
विद्वान्ने लिखा है कि जो राजा प्रजाकी आमदनीके ६ठे हिस्से भी अधिक कर (टेक्स) र प्रजासे धम महण की लालसा रखता है उसका देश नष्ट हो जाता है और पश्चात् उसका राज्य 'जावा ॥१॥
बादि की सा न करनेसे हानिःस्वयं बीवधनमपश्यतो महती हानिर्मनस्तापश्च क्षुत्पिपासाऽप्रतिकारात् पाएं च* ॥८॥
गाय-मैस-यादि जीविकोपयोगी धनकी देख-रेख न करने वाले पुरुषको महान् आर्थिक-तति नि उठानी पाती है एवं उनके मर जानेसे उसे अधिक मानसिक पीड़ा होती है तथा उन्हें भूखे-प्यासे ... महान् पाप-बंध होता है। अथवा राजनीतिके प्रकरण में गाय-भैंस आदि जीवन निर्वाहमें उप
सम्पतिकी रक्षा न करने वाले राजाको बढ़ी आर्थिक पति-धनकी हानि-उठानी पड़ती है एवं उन समका -साविध होने-मरजानेसे उसको मानसिक कष्ट होता है। क्योंकि गो-धनके भभाष से राष्ट्री उपि चौर व्यापार आदि जीविका नष्टप्राय होजाती है । जिसके फलस्वरूप प्रजाकी चासोर करने के उपाय-कृषि व्यापार-आदि नष्ट होजानेसे तसे महान् पाप-बंध होता है।
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नारवः:-दुर्भिक्षेऽपि समुत्पन्ने पत्र राजा प्रयच्छति । निजाण निजं सस्यं तदा कोको म यीपते ॥१६॥ पुर:-पहभागाम्मधिको दरडो यस्य राशः प्रतुष्टये । तस्य राष्ट्र चर्य याति राज्यं च तदनन्तरम् ॥१॥
प्रतीकात् पापं चेति' ऐसा मु. मू और १० कि० म० प्रतियोंमें पाठ है परन्तु अर्थमेद