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________________ ॐ नीतिवाक्यामृत * १४१ nomenameraman...... ..... मारद' विधान्ने लिखा है कि जिस देशमें राजा अकाल पड़नेपर अपने खजानेकी सम्पत्तिसे सरीषकर मजाको देता है, तब उसकी प्रजा अकाल के दुःखसे पीड़ित नहीं होती ॥१॥ निष्कर्ष:-इसलिये नीतिमान् राजाको अधिक धान्य-संग्रह करना चाहिये ।।६।। राबाको धनकी लालसा होनेसे हानिः समुद्रस्य पिपासायां कुतो जगति जलानि ? ॥७॥ भर-समुद्रको प्यासे रहनेपर संसारमें जल किस प्रकार पाये जासकते हैं ? नहीं पाये जासकते । भाषा-शास्त्रों में उल्लेख है कि लवण समुद्र में गंगा और सिंधु आदि नदिए अपनी १४ हजार सावक वियों समेत प्रवेश करती हैं, ऐसी विशाल जल-राशिके होनेपर भी यदि समुद्र प्यासा रहे, तो संसारमें जल ही नहीं रह सकते; क्योंकि समुद्रकी प्यासको दूर करनेके लिये इससे अधिक जलसोही पाई नहीं जाती। उसी प्रकार राजा भी यदि प्रचुर धन-राशिकी लालसा रखता हो-प्रजासे सकले भागसे भी अधिक कर ( टेक्स) लेनेकी लालसा रखता हो-तो फिर राष्ट्रमें सम्पत्ति किस भारदसती हैं। नहीं रह सकतो। विमर्श:-अधिक टेक्स बदानेसे समस्त राष्ट्र दरिद्र होकर नष्ट-भ्रष्ट होजाता है। अतएव न्यायराणाको उचित रही प्रजासे नेना चाहिये जिससे राष्ट्रकी श्रीवृद्धि होती रहे ॥७॥ विद्वान्ने लिखा है कि जो राजा प्रजाकी आमदनीके ६ठे हिस्से भी अधिक कर (टेक्स) र प्रजासे धम महण की लालसा रखता है उसका देश नष्ट हो जाता है और पश्चात् उसका राज्य 'जावा ॥१॥ बादि की सा न करनेसे हानिःस्वयं बीवधनमपश्यतो महती हानिर्मनस्तापश्च क्षुत्पिपासाऽप्रतिकारात् पाएं च* ॥८॥ गाय-मैस-यादि जीविकोपयोगी धनकी देख-रेख न करने वाले पुरुषको महान् आर्थिक-तति नि उठानी पाती है एवं उनके मर जानेसे उसे अधिक मानसिक पीड़ा होती है तथा उन्हें भूखे-प्यासे ... महान् पाप-बंध होता है। अथवा राजनीतिके प्रकरण में गाय-भैंस आदि जीवन निर्वाहमें उप सम्पतिकी रक्षा न करने वाले राजाको बढ़ी आर्थिक पति-धनकी हानि-उठानी पड़ती है एवं उन समका -साविध होने-मरजानेसे उसको मानसिक कष्ट होता है। क्योंकि गो-धनके भभाष से राष्ट्री उपि चौर व्यापार आदि जीविका नष्टप्राय होजाती है । जिसके फलस्वरूप प्रजाकी चासोर करने के उपाय-कृषि व्यापार-आदि नष्ट होजानेसे तसे महान् पाप-बंध होता है। - हा नारवः:-दुर्भिक्षेऽपि समुत्पन्ने पत्र राजा प्रयच्छति । निजाण निजं सस्यं तदा कोको म यीपते ॥१६॥ पुर:-पहभागाम्मधिको दरडो यस्य राशः प्रतुष्टये । तस्य राष्ट्र चर्य याति राज्यं च तदनन्तरम् ॥१॥ प्रतीकात् पापं चेति' ऐसा मु. मू और १० कि० म० प्रतियोंमें पाठ है परन्तु अर्थमेद
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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