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________________ १४२ BOORAnd * नीतिवाक्यामृत * [वार्ता शुक्र' विद्वानने कहा है कि 'जो मनुष्य गाय-भैंस आदि पशुओं की सँभाल- देख-रेख नहीं करता उसका वह गोधन नष्ट हो जाता है--अकालमें मृत्युके मुखमें प्रविष्ट होजाता है, जिससे उसे महान पाप-यंत्र होता है ||१|| निष्कर्ष – 5- राजाका कर्तव्य है कि वह राष्ट्रके जीवन-निर्वाहके साधन - कृषि और व्यापारोपयोगी गोधनकी सदा रक्षा करे ||८|| वृद्ध-वाल-व्याधित-क्षीणान् पशून् बान्धवानिष पोषयेत् ॥ ६ ॥ अर्थः- मनुष्यको अनाथ, माता-पिता से रहित, रोगी और कमजोर पशुओं की अपने धुनों की तरह रक्षा करनी चाहिये ॥६॥ कास' विद्वानने लिखा है कि 'जो दयालु मनुष्य अनाथ, माता-पिता से रहित, या लूले लंगड़े दोन व भूखसे पीड़ित पशुओं की रक्षा करता है, वह चिरकाल तक स्वर्गके सुखोंको भोगता है ॥१॥ पशुओं के अकाल मरणका कारण: अतिभारो महान् मार्गश्च पशूनामका ले मरणकारणम् ॥ १८ ॥ अर्थः- अधिक बोझ लादनेसे और अधिक मार्ग चलानेसे पशु की अकाल मृत्यु हो जाती है ||१२|| हात विद्वान्ने लिखा है कि 'पशुओं के ऊपर अधिक बोझ लादना और ज्यादा दूर चलाना उनकी मौत का कारण हैं इसलिये उनके ऊपर योग्य वोमा लादना चाहिये और उन्हें थोड़ा मार्ग चलाना हिये ||१|| जिन कारणों में दूसरे देशोंसे माल माना बन्द हो जाता है: शुल्कवृद्धिर्वलात् परयग्रहणं च देशान्तरभाण्डानामप्रवेशे हेतुः ||११|| अर्थः- जिस राज्य में दूसरे देशकी चीजों पर ज्यादा कर — टेक्स लगाया जाता हो तथा जहाँ के राज-कर्मचारीगण जबर्दस्ती थोड़ा मूल्य देकर व्यापारियोंसे वस्तुएँ छीन लेते हों, उस राज्यमें अन्य देशों माल आना बन्द हो जाता है ||११|| शुक्र विद्वानने लिखा है कि 'जहाँपर राजकर्मचारी वस्तुओं पर ट्रैक्स बढ़ाते हों और व्यापारियों के धनका नाश करते हों, उस देशमें व्यापारी लोग अपना माल बेचना बैंड फर देते हैं ||१|| उफ बातका दृष्टान्तद्वारा समर्थन: काठपात्र्यामेकदेव पदार्थो रभ्यते ||१२|| १ तथाच शुक्रः - चतुष्वादिकं स स्वयं यो न पश्यति । तस्य तथाचमभ्येति ततः पापमवाप्नुयात् ॥॥॥॥ २ तथा व्यासः - अनाथान् विकलाइ दीनान् परीतान् पशूनपि । दयावान् पोषयेयस्तु स स्वर्गे मोदनं चिरम् ॥१॥ ३ तथा च हारीत:--प्रतिभारो महान् मार्गः पशूनां मृत्युकारणे । तस्मादभावेन मार्गेणापि प्रयोजयेत् ॥१॥ २ नाच शुक्रः--यत्र ग्रहन्त शल्कानि पुरुष भूपयोजिताः | अर्थानं न कुर्वन्ति तत्र नायाति क्रिया ॥१॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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