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१० मंत्रि - समुद्द ेशः
- मंत्री आदिकी सलाह माननेवाले - राजाका निर्देश:
मंत्रि-पुरोहित- सेनापतीनां यो युक्तमुक्त' करांति स श्राहार्यबुद्धिः ॥ १ ॥
:- जो राजा मंत्री, पुरोहित और सेनापतिके कहे हुए धार्मिक एवं आर्थिक सिद्धान्तोंका पालन महायुद्ध-युक्त कहते हैं ।
- इसलिये राजाको अपने राज्य की श्रीवृद्धिके लिये उक्त तीनोंकी योग्य बात माननी
विद्वानने लिखा है कि 'जो राजा मंत्री, पुरोहित तथा सेनापतिके हितकारक वचनों को नहीं दुर्योधन (धृतराष्ट्रका बड़ा पुत्र ) राजाकी तरह नम्र होजाता है ||१||
माझबुद्धियुक्त प्रधानमंत्री आदिके हितकारक उपदेश (सलाह) को माननेवाले - होनेके लिये समर्थन: •
असुगन्धमपि सूत्रं कुसुमसंयोगात् किमारोहति देवशिरखि
पुष्पमाला श्राकारको प्राप्त हुए तंतु सुगन्धि-रहित होने पर भी पुष्पोंको संगति-संयोगताओंके सिर पर धारण नहीं किये जाते ? अवश्य किये जाते हैं। भावार्थ:- जिसप्रकार लोकमें निर्गन्ध तंतु भी पुष्पों के संयोगसे देवताओंके मस्तकपर धारण किये सरकार मूर्ख एवं असहाय राजा भो राजनीति विद्यामें निपुण और सुयोग्य मंत्रियों को अनुकू· ́
द्वारा अजेय होजाता है ।
- प्रायः राजाकी बुद्धि कामविलासके कारण नष्टप्राय और विभ्रम-युक्त होती है; अतरव विष यान, आसन और द्वैधीभाव आदि षाड्गुण्य-नीतिके प्रयोगमें गस्ती करने लगता है, यह मंत्री, पुरोहित और सेनापतिकी उचित सम्मतिको मान लेता है, तब यह ठीक रास्तेपर है और ऐसा होनेसे उसके राज्यको श्रीवृद्धि होती है ||२||
अन्तभदेव विज्ञानने लिखा है कि 'साधारण मनुष्य भी उत्तम पुरुषों की संगहिसे गौरव - महत्व ये हैं, जिसकार तंतु पुरुष-माता के संयोगले शिर पर धारण कर लिये जाते हैं ||१||' अम्बिका रटान्स द्वारा समर्थन: -
महद्भिः पुरुषः प्रतिष्ठितोऽश्मापि भवति देवः किं पुनर्मनुष्यः ||३||
-प्रचेवन और प्रतिमाको आकृति युक्त पाषाण भी विद्वानोंके द्वारा प्रतिष्ठित होनेसे देव हो -देवकी तरह पूजा जाता है । तब 'सचेतन पुरुषका महापुरुषोंकी संगति से उन्नत हो जाना' इसे क्या है ? अर्थात् श्रवश्य उन्नत होजाता है ॥३॥
यो राजा मंत्रियां न करोति हितं वचः । स शीघ्रं नाशमायाति यथा दुर्योधनो नृः ||१|| देवन्तमानां प्रस ेन लघवो यान्ति गौरवं । पुनमाजाप्रत न सूत्र शिरसि धार्यते ॥ १n