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नीतिवाक्यामृत
१५६.
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कामोपधा-इसी प्रकार काम शास्त्र में प्रबोगा गुप्तचर को भेजकर उनकी कंचुकीके साथ मित्रना कराके काम शुद्धिका निश्चय करे । यदि शत्र राजा कामी हो-शत-क्रीड़न परकला नवन-प्राप्ति व्यसनोमें फंसा हुश्रा हो तो उससे युद्ध करना योग्य है । यदि जितेन्द्रिय हो तो संधि करने के योग्य है। ___भयोपचा-- इसी प्रकार भत्रीको शत्र, राजाके यहाँ शूरवीर और युद्धकलामें प्रवीण गुप्तचर भजकर उसकी शत्र के सेनापतिमे मित्रता करवाकर शव राजाकी बहादुरी या डरपोकपनका निश्चय करे । यदि शत्र, गजा डरपोक हो तो मंत्रीको उसके साथ युद्ध छेड़ना चाहिये और यदि बहादुर हो तो उसमें मंधि कर लेनी चाहिये ।।
निस्कर्ष-इस प्रकार मंत्रीका चतुर. गुप्तचरोंद्वारा शत्र भूत राजाओंकी धार्मिक, आर्थिक, कामिक और भय सम्बन्धी शुद्धि का निश्चय करते रहना चाहिये । ऐसा करने वाला ही मनी पाजगुण्य-मधि, विमह, यान और थामन-आदि) का उचित स्थानपर प्रयोग करके अप्रामराज्यको प्रापि, प्रातकी सुरक्षा और रक्षितराज्य की वृद्धि करनेमें समर्थ होता है ॥१४॥
शुक्र' विद्वानन कहा है कि राजमंत्रीको अपने-अपन विषयों में प्रवीण गुमचरोंको शत्रभूतराजाके यह भेजकर उनके पुरोहित से उसकी धर्म-शून्यता, कोषाध्यक्षसे निधनता, काचुफीसे विषयलम्पटता और पनातिम डरपोकपन का निश्चय करके अपने राजासे सलाह करके उसके साथ विग्रह या युद्ध करना चाहिये ।।१।। नांचकुलवाले मंत्रियों के दोषः -
___ अकुलीनेषु नास्त्यपवादाद्भयम् ।। १५ ।। अर्थः - नीचकुस्नखाले मंत्री अदि अपनी अपकीर्ति-लोक में होनेवाली निन्दा-से नही उरते।
भावार्थ:-नीन कुलका मंत्री लेोकमें होनेवाली अपनी निन्दासे नही परसा, इसलिये वह कभी राजाका मन भी कर सकता है। अतएव राजाको कुलीन मंत्री रखना चाहिये। ॥१२ -
___ बलभदेष विद्वान्ने कहा है कि 'नीच कुमका व्यक्ति अपनी अपकीर्तिपर ध्यान नहीं देता। इसलिये गजाकी उम मंत्री नहीं बनाना चाहिये ॥१॥' पक्ति वातका विशेष समर्थन:
अलर्कविषवत् कालं प्राप्य वियते विजातयः ॥ १६ ॥ अर्थ:-नीचकुलयाले राजमंत्री वगैरह पुरुष कालाम्पर में (राजाके ऊपर भापशि भामेपर) पागल कुनेके षिषकी तरह यिद होजाते हैं।
। नया न शुभः–जावाचरैयः कथितोऽरिंगम्यः धार्थहीनो विषयी सभीकः । पुरोहिताधिपतेः सकाशान् , स्वीकात्
भैन्य तःम कार्य: ॥१॥ २ राधा च यलमदेव..-वपिनासन पनि यसअजितः । मानुगमजा कायों मभी न मलामतः ।।