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* नीतिवाक्यामृत है
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अर्थ:--वणि कोका क्रोध प्रियभाषण पर्यात होता है-ये लोग मीठे बचनों द्वारा क्रोधको त्यागकर संतुष्ट होजाते हैं।॥३॥
गर्ग' विद्वानने लिखा है कि जिसप्रकार इष्ट वस्तुके वियोगसे उत्पन्न हुआ दुःख उसके मिल जानेपर नष्ट होजाता है, उसीप्रकार पणिोंका क्रोध उनसे मीठे वचन बोलनेसं नष्ट होजाता है ॥१॥ वैश्योंकी क्रोध-शान्तिका पाय:
वैश्यानां समुद्धारकप्रदानेन कोपोपशमः ॥३६॥ अर्थः-जमींदार वैश्योंका क्रोध उनका कर्जा चुका देनेसे शांत हो जाता है ॥३५॥
भृगु विद्वान्ने लिखा है कि यदि जमींदारके पिताका भी वैरी हो, जो कि उसे कुपित कर रहा हो परन्तु यदि यह उसके कर्जाको चुका देता है तो वह शांत होजाता है ।।१।। वणिकोंकी श्री-वृद्धिका उपायः
निश्चलैः परिचितश्च सह व्यवहारो वणिजां निधिः ॥४०॥ - अर्थ:---वैश्य लोग उन्हीं के साथ कर्जा देने का व्यवहार करते हैं, जिनके पास मकान और खेत आदि होते हैं और जो एक जगह स्थायी रीतिसे रहते हैं एवं जिनकी आमदनी और खर्च-मादिसे परिचित होते हैं। ऐसा करनेसे-विश्वस्तोंको कर्जा देनेसे-भविष्यमें कोई खतरा (धन बनेकी शंका ) नहीं रहता किन्तु उनसे उन्हें प्रचुर धन मिलता है ॥४०॥ नीच जातिके मनुष्योंको वश करनेका उपाय:
दण्डभयोपघिभिवंशीकरणं नीच जात्यानाम् ॥४१॥ अर्थ:-नीच पुरुषोंका वशीकरणमंत्र दंडका भय ही है ॥४||
गर्ग विद्वान्ने लिखा है कि 'समस्त नीचजाति वालोंको अब तक इंसफा भय नहीं दिखाया जाता सब तक ये वशमें नहीं होते; अव एव उन्हें दण्डका भय दिखाना चाहिये ।।२।।
इति त्रयी-समुशः।
१ तथा च गर्ग:-यथा प्रियेण रटेन नश्यति प्याधिवियोगजः | प्रियाज्ञापेन तद्वइणिजो नश्यति पुर) २ 'उद्धार प्रदान कोपोपशमो वैश्यानाम्' इस प्रकार म. म. पुस्तक में पाठ है, परन्तु अर्थभेद कुछ नी । ३ तया च भूगु:-अपि चेत् पैत्रिको वैरो विश कोपं प्रजायते । उधारकालाभेन निःशेषो विलयं व्रजेत् ।।१।।
४ "विश्वस्तैः सह व्यवहारो पणजो निषिः' ऐसा सै० टोका पुस्तक में पाठ है, परन्तु उन पाठ मु. मू. प्रतिने संकलन किया गया है, अर्थभेद कुछ नहीं।
५ 'दण्डभयोधि वशीकरणं नीचाना' ऐसा नु० म० पुस्तकमें पाट , परन्तु अर्थभेद कुछ नहीं । ६ तथा च गर्ग:--सर्वेषां नीचजात्याना याचनो दर्शगन भयम् । नायनो वशमायान्ति दर्शनीयं ततो भयम् ॥१॥