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ॐ नौविषाक्यामून
भावार्थ:-जिसप्रकार नीले रंगसे रंगे हुन् वस्त्रपर दुसरा रंग नहीं बढ़ाया जासकता उसीप्रकार मूब और हठी राजाका अभिप्राय-विधार-भी किसीके द्वारा बदला नहीं जा सकता।
नारद' विद्वानने भी उक्त बातका समर्थन किया है कि 'नील रंगसे रंगे हुए वस्त्रके समान दुराग्रही राजाकी पास किसीके द्वारा बदली नहीं जा सकती ॥ १॥
___ निष्कर्षः-मूर्ख और दुरामही राजासे राष्ट्रको हानि-पाति होती है, क्योंकि वह पान-हिनेषीधुमयोंकी पथ्य-हितकारक-बातकी अबहेलना करता है जिससे राष्ट्रकी श्रीद्धि नहीं हो पाती ।। ७६ ।। अब पथ्य-हितकारक-अपदेश देनेवाले विद्वानों के प्रति संकेत करते हुए उन्हें कर्तत्र मार्ग बताते है:
यथार्थवादो विदुषां श्रेयस्करी यदि न राजा गुणप्रद्वेषी ॥ ७७ ॥
अर्थः-यहि राजा गुणोंमे दूर नहीं रखता-गुणाही है, तो उसके ममक्ष यथार्थ वचन बोलना-- तत्काल अप्रिय होने पर भी भविष्यमें कल्याणकारक बचन बोलना-विद्वानोंके लिये कल्याणकारक है, अन्यथा नहीं।
हारीत विद्वामने भी कहा है कि राजाके समक्ष विद्वानोंके द्वारा कहे हुए यथार्थवचन-पभ्यरूप उपदेश-उन्हें तब कल्याणकारक होसकते हैं जब राजा गुणोंसे द्वेष न करवा हो ॥१॥ अब स्वामी के प्रति विद्वानोंका कर्तव्य निर्देश करते हैं:
वरमात्मनो मरणं नाहितोपदेशः स्वामिषु ।। ७८ ॥
अर्थ:-शिष्ट पुरुषको एक बार मर जाना उत्तम है परन्तु उसे अपने स्वामी के प्रति अहितकारक मार्ग का उपदेश देना अच्छा नहीं || ८ || ____ म्यास' विरामने कहा है कि यदि राजा अपनी हिनकारक बातको ध्यान देकर नहीं भी मुनता हो, तथापि मधियोको डसे कर्वग्य-पथ पर पान करने के लिये हितकी मात समझाते रहना चाहिये।
१तमानारस:बुर्विदम्बस्व भूपस्य भावः शम्मत नाम्दया ।
कोंडप बम नीलारस्व बासमः ॥१॥ २ सपा बहसः--
भेवस्कराचि मास्यानि स्युसतानि यथार्थतः । विदिदि भूषाको गुलोमीन चेदयेत् ॥ ३॥ ३ तपारम्बास:अश्वयि योद्धव्यो मंषिभिः पृथिवीपतिः । रमात्मदोषनाशाय विदुरेवामिकासुतः ॥१॥