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* नीतिवाक्यामृत
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भगवजिनसेनाचार्य ने कहा है कि तीर्थरों-श्रादिकी पूजा करना, विशुद्ध कृत्तिस खेती, पशुपालन भोर व्याशर द्वारा जीविका करना, पान्नदान, शास्त्र-स्वाध्याय, सदाचार-अहिंसा, सत्य, अघीय, प्रा. पर्य और परिप्रह-परिमाण तथा तपश्चर्या करना ये वेश्योंक कर्तव्य उपासकाध्ययन के आधारमे निर्दिष्ट किये गये हैं।
पैश्योंका कर्तव्य कृषि, व्यापार और पशुपालन द्वारा जीवन निर्वाह करना है ।।
शुका विद्वान्ने भी कहा है कि ऋपि-खेती, गो-रक्षा, निष्कपट भावसे ईश्वरको पूजा करना भापि तथा बन्न चाँटनेके स्थान-सदावत आदि बनवाना एवं अन्य पुण्यकाय-बानशालाई संस्थापित करना ये वैश्योंक कत्तव्य कहे गये हैं ॥११॥
निष्कर्ष:-येश्यों के उक्त फतव्योमें खेती, पशुपालन और व्यापार ये जीवन-निर्वाहमें उपयोगी है एवं अन्य नैतिक और धार्मिक समझने चाहिये ||६|| शुगोंके कत्तव्य:त्रिवर्णोपजीवनं कारकुशीलवकर्म पुण्यपुटवाहन च शूद्राणां" ॥१०॥
अर्थः-शूद्रोंका अपना धर्म-प्रामण, क्षत्रिय और वैश्योंको संवा शुभषा करना, शिल्पकला-चित्रकला आदि, गीत, नृत्य और वादिन-गाना, नाचना और बजाना भौर भाटपारण भादि का कार्य रना एवं भिलुकोंकी सेवा करना है ॥१०॥
पाराशर विद्वाम्ने भी कहा है कि प्रामण, क्षत्रिय और वैश्य इन सोनों वर्गों की सेवा-राणा, शिल्पकला, गाने, नाचने और बजाने से जीयिका करना भौर भिनुकोंकी सेवा करना एवं अन्य रान-पु. पवावि कार्य करना शुओंको विरुद्ध नहीं है ।।१॥
१ तपाच भगवविजनसेनाचार्य:हम्पा माता च दवि स्वाध्यायं संयम तपः । मुतोपाटकसूत्रत्वात् स तेभ्यः समुशादियत् ॥१॥ पेश्याच कृषियाणिन्यपशुपाल्योपजीविनः ।
धादिपुराबखे। २व्या शुकः
कृषिकर्म गवा रक्षा यज्ञा दम्भवजितम् । पुराणानि सर्वाणि रेश्मनिरुदाहृता ।।१॥
३ कारकुशीलवकर्म शकटोपधान RAEE पेक्षा पाठ R० और tren. प्रतिभा पलमान लिमका अर्थ:-भिनेकी सेवाके रपान में बैल-गाडीसे वोमा दोकर जीविका करना यह विशेषनाको खबर ।
. तया च शरायर:सर्वात्रमस्य शुम मा बीचबारवकर्म । मिच्या सेवन पुरुष सहावा न विश्वगते