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मनुष्वको साधु महात्माओं एवं विद्वान् गृहस्थाचार्योकी उपासना-सेवा करनी चाहिये । भार:-साधु महात्मा और विधान गृहस्थाचार्य बड़े सदाचारी, स्वार्थस्यागी और बहुश्रुत विद्वा।। प्रववव इनकी सेवा-भक्ति-से मनुष्य गुणवान् एवं पारत्रिक कल्याणका पात्र होजाता है ॥२७॥
सामदेव 'विद्वाम्ने शिस्खा है कि मनुष्य जिसप्रकारके पुरुषों के वचनोंको सुनता है और जैसों की
संपति करता है, वैसी ही प्रवृत्ति करने लग जाता है, अतएव नैतिक मनुष्यको साधु पुरुषोंकी भरली पाहिये ।
र मनुष्यका कर्तव्यः
स्नात्वा प्रान्देवोपासनान कंचन स्पृशेत् ॥२८॥ मी.-मनुष्यको स्नान करके ईश्वर भक्ति करनी चाहिये, उसके पहले उसे किसी अस्पृश्य-न
स्तुका स्पर्श नहीं करना चाहिये ॥२८॥ - विद्वानने लिखा है कि मनुष्यको स्नान करने के पश्चात् इश्वर भक्ति और अग्निमें हवन करना पाल यक्षा शक्ति पान देकर भोजन करना चाहिये ।।१।।' मदिरमें क्या करना चाहिये ? उसका वियरण:---
देचागारे गतः सर्वान् यतीनास्मसम्बन्धिनीर्जरती:पश्यत् ॥२६।।
--मनुष्योंको मन्दिर में जाकर ईश्वरभक्तिके पश्चात् समस्त साधुजनों और योवृद्ध कुलको बायोग्य नमस्कार करना चाहिये ॥२६॥ र वारीत विहामने कहा है कि मनुष्य मन्दिर में प्रविष्ट होकर उसमें वर्तमान साधुओंको तथा
बोको भक्ति पूर्वक नमस्कार करे ॥१॥ पूर्वोक्त सिखाम्सका समर्थन करनेवाली दृष्टान्तमाला:-- .1 तार स्तमदेव:
परमाणां शृणोत्या याक्षारयाव सेवते ।
धारो .भमत्यस्तस्मात् साधन समाश्रयेत् ।। १ तथा च वर्ग:--
लावा त्वम्पर्धयेद् देवान् वैश्वानरमतः परं ।
हो वान यथाशक्त्या दवा भोजममाचरेत् ।।१।। Pा पारीत:
स्वायतने व गत्या सर्वान् पश्येत् स्वभक्तिः । " सत्रामिवान् यतीन् पश्चात्ततो वृद्धाः कुलस्त्रियः ।।३।।
.. नोट- पद्म-रलोक-का प्रथम चरण अशुद्ध या शत: 'चायतन च गया इसप्रकार संशोधित रामबारे। सम्पादक:
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