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Gahannna
* नीतिवाक्यामृत *
ग्यास विद्वान्ने भी लिखा है कि 'ओ कुस्ति पुरुष दुःख और खेदपूर्वक जीवन व्यतीत करता है उसको इस मर्त्यलोकमें कोई सुख नहीं मिलता, पुनः कसे में किस प्रकार सुख मिल सकता है ? नहीं मिल सकता ॥ १ ॥'
अब कुलीन पुरुषका माहात्म्य तथा कुत्सितकी निन्दाका निरूपण करते हैं:
स किंपुरुषो यस्य महाभियोगे सुवंशधनुष इव नाधिकं जायते बलम् ॥ २६ ॥
अर्थ:- जिस मनुष्य में उत्तमांस वाले धनुषके समान युद्ध आदि आपत्तिकाल आनेपर अधिक पौरुष - वीरता शक्ति का संचार नहीं होता वह निन्द्य पुरुष है अर्थात् जिसप्रकार उत्तम वाँसवाले धनुष में वा-स्थापन काल में अधिक दृढ़ता- मजबूती - आजाती है उसीप्रकार कुलीन पुरुषमें भी आपत्तिकाल में अधिक वीरता -- शक्तिका संचार होजाता है। एवं जिसप्रकार खराब बांस वाला धनुष वाण स्थापन काल में टूट जाता है या शिथिल होजाता है उसीप्रकार कायर व्यक्ति भी युद्धादि आपत्तिकालमें कायरता धारण कर लेता है उसमें वीरता नहीं रहती ।। २६ ।
गुरु' विद्वानने भी लिखा है कि 'युद्धकालमें कुलीन पुरुषोंके वीरता - शक्तिकी वृद्धि होती है और जो पुरुष उस समय वीरता छोड़ देते हैं - युद्धसे मुख मोड़ लेते हैं- उन्हें नपुंसक समझना चाहिये || १ | अभिलाषा -- इच्छाका लक्षण निर्देश:
आगामिक्रिया हेतुरभिलाषो वेच्छा* ॥ २७ ॥
अर्थः- जो भविष्य में होनेवाले कार्य में हेतु है उसे अभिलापा या इच्छा कहते हैं ।। २७ ।। गुरु" विज्ञामने लिखा है कि 'जो भविष्य में होनेवाले कार्य में हेतु है उसे अभिलाषा कहते हैं, इच्छा और संधा उसीके नामान्तर है यह सदा प्राणियोंके होती है ॥ १ ॥ '
१ तथा च व्यासः -
जीयते क्लेशलेदाभ्यां सदा कापुरुषोऽत्रयः ।
न तस्य मध्ये यो लाभः कुतः स्वर्गसमुद्भवः ॥ १
Teddieldada
२स किम्युरुषः यस्य महायोगेष्वी धनुष इवाधिक न जायते बलम्' ऐसा मु० है, जिसका अर्थ यह है कि 'जिसप्रकार प्रचेतन - जड़-धनुष थोड़ी या अधिक शक्तिका संचार नहीं होता उसीप्रकार जिस पुरुषर्मे महान् कार्य-युद्ध दिप अधिक शक्तिका संचार नहीं होता वह निन्द्र है ।
या
३ तथा च गुरुः
युद्धका सुवंश्यानां वीर्योत्कर्ष: प्रजायते ।
ये च बीर्य हानि: स्पा क्षेत्र शेया नपुंसकाः
॥
४] ''इसप्रकार मु० ६० प्रतिमें पाठ है परन्तु मे कुछ नहीं है।
* तथाच गुवः
भाविकल्पस्य यो हेतुरभिः स उभ्यते ।
इच्छा वा तस्य सन्धा या भवेत् प्राणिनां सदा || स
और इ०
शि. मू० प्रतियोंमें पाठ
अधिक युद्ध-श्राविके अवसर पर