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* नीतिवाक्यामृत ..... ........... . श्रय विषयके स्वरूपका निर्देश करते हैं:
इन्द्रियमनस्तर्पणो भायो विषयः ।। १६ ॥ अर्थ:-जिस वस्तुसे इन्द्रियां और मन संतुष्ट हो उसे विषय कहते हैं ॥१६॥
शुक्र' विद्वानने लिखा है कि "जिस पार्थसे मन और इन्द्रियोंको संतोष होता है वह पदार्थ विषय कहा जाता है जो कि प्राणियोंको सुख देने वाला है ॥ १॥
निष्कर्षः-जिस पदार्थ-स्त्री पुत्रादि-से इन्द्रियाँ और मन संतुष्ट न हो वह सुखदायक नहीं होता किन्तु जिससे इम्भूियाँ और मन प्रसन्न हो--संतुष्ट हो वह सुखदायक होता है ।।१६।। अब दुःखके लक्षणका निर्देश करते हैं:
दुःखमप्रीतिः ॥ १७ ॥ अर्थ:--जिस वस्तुके देखने पर अप्रीति (संतोष न हो---वैराग्य हो) हो वही दुःस्व है ॥१७॥
शुक्र विद्वानने लिखा है कि जिस वस्तुके देखने पर या धारण करने पर प्रीति उत्पन्न नहीं होती वह वस्तु अच्छी होने पर भी प्राणियोंको दुःख देने वाली है ॥१॥ अब सुखका लत्तण निर्देश करते हैं:
तदुःखमपि न दुरान्वं यत्र न संक्लिश्यते मनः ॥१८॥ अर्थः—जिस वस्तुके देखने पर, मनको संक्लेश-का-न हो वह वस्नु दुःखद हो करके भी सुखकर है ॥१८॥ अब चार प्रकारके दुःखोंका निरूपण किया जाता है:
दुःखं चतुर्विधं सहज दोषजमागन्तुकमन्तरंग चेति ॥१६॥ सहर्ज क्षुत्तृषामनोभूभव चेति' ॥ २० ॥
' तथा च शुक्र:मनसश्चेन्द्रियाण म सन्तोषो येन जायते ।
भावो विषयः प्रोशः प्राणिनां सौख्यदायकः ।।१॥ २ तथा च शुक:यत्र नो जायते प्रीतिहरे वाच्छादिनेऽपि वा। तच्छ धमपि दुःखाय प्राणिनां सम्प्रजायते ॥ १ ॥ । 'सहज तर्प-पी) मनोमूमममिति' ऐसा पाठ म. और .शि.मप्रसियों में है परन्तु अर्थमेव कुछ मा