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७ त्रयी-समुद्देशःबीवियामा रपमर:
बतारो वेदाः, शिवा कन्यो व्याकरणं निरुक्त छन्दो ज्योतिरिति पडझानीतिहासमीमांसा-न्याय-धर्मशास्त्रमिति चतुर्दशविद्यास्थानानि यी ॥१॥
-चार वेद हैं:-प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग'। उमेदोंके निम्नप्रकार ६ अङ्ग हैं-इन छह अङ्गोंके शानसे उक्त पारों प्रकारके वेदोंका शान
सिवा २ कल्प ३ व्याकरण ४ निरुक्त ५ छन्द और ६ ज्योतिष । महा:-स्वर और भ्यन्जनादि वर्णोका शुद्ध उच्चारण और शुद्ध लेखनको बतानेवाली विद्याको
पः-धार्मिक श्राचार-विचार या क्रियाकाण्डों-गर्भाधान आदि संस्कारों के निरूपण शास्त्रको 'कल्प' कहते हैं। १ तथा चोक्तमाः: श्रुतं भुविहितं वेदो द्वादशाङ्गमकल्मषं ।
सोपदेशि यहास्य न वेदोऽसौ कृतान्तवाक् ॥1॥ परार्या धर्मशास्त्र व तत्स्यावधनिषेधि पत् ।
परदेशि यश शेयं धूर्त प्रणेतकम् ॥१॥ - ग्रादिपुरासे भगय जिमसेनाचार्य:पर्च ३६, श्लोक २२-२३॥
सर्व-निदोष-अदिसा धर्मका निरूपक अाचाराम-श्रादि द्वारशा अन-शस्त्र-जो कि उक्त प्रयम
अनुबोगों में विभाजित है उसे 'वेद' कहते हैं, परन्तु अणि-हिसाका समर्थक वाक्य 'वेद' नहीं कहा जा मायान्त-बाणी समझनी चाहिये ।। 5. होमकार जो माणिहिसा निषेध करनेवाले शास्त्र है वे ही पुराण और धर्मशास्त्र कहे जा सकते है,
के वियरत-जीक हिंसाके समर्थक शास्त्रों-को धूतीकी रचनाएं, समझनी चाहिये ॥२॥
तया चोरतमा:PAR किवास्त्रिधाम्नाता भावाप्यायसंग्रहे।
ष्टिभिरनुष्ठेया महोदः शुभावाः ॥1॥ RE: गोम्बयक्रियाश्चैव तथा दीक्षाम्बपक्रियाः। .. यक्रियाश्चेति साविधैवं बुधैर्मताः ।।२।।
चापानाथास्थिपंचावात् शेषाः गर्भावयक्रियाः। बारिशराष्टौ च स्मृता दीक्षान्वयमियाः ॥३॥
चपनियारचैव सप्त तज्जैः समुचिचाः । पास जयाकर्म नामनिर्देशोभ्यमनद्यसे ॥४॥ श्रादिपुराणे भगवजिनसेनाचार्या सर्व ३८ श्लोक १ से १३ ॥
रोष भगले पह पर)