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* नीतिवाम्यामूत
द्विजातियों का निर्देश:
प्रयो वर्णाः द्विजातयः ॥६॥ अर्थ:-ब्राहाण, क्षत्रिय और वैश्य ये वीनों वर्ण द्विजाति कहे जाते हैं।
भावार्थ:-उक्त सीनों वर्णोका शरीर-जन्मके सिवाय गर्भाधान-मावि मस्कारोंसे प्रात्म-जम्ममी होता है। अतएष भागममें इनको द्विजाति या द्विजम्मा कहा है ॥६॥
भगवजिनसेनाचार्य ने भी कहा है कि एकवार गर्भसे और दूसरीधार गर्भाधान-श्रादि संस्कारोंसे इसप्रकार दो जन्मोंसे जो उत्पन्न हुअा हो उसे द्विजन्मा या द्विजाति कहते हैं, परन्तु जो इक्त गर्भाधानादिसंस्कारों और उनमें प्रयोग किये जाने वाले मन्त्रोंसे शून्य-संस्कारहीन-है वह देवल नाममात्रसे द्विजप्राह्मण है, वास्तविक नहीं ॥शा ब्राह्मणों के कर्तव्योंका विवरण:
अध्यापन याजनं प्रतिग्रहो ब्राह्मणानामेव ॥७॥ अर्थ:--प्रमाणोंका ही धर्म जीविकोपयोगी कम्य-शास्त्रोंका पदाना, पूजा कराना और वाम प्रहण करना हैजा
भगवजिनसेनाचार्य ने भी कहा है कि शास्त्रोका पढ़ना, पढ़ाना, दान देना सेना और रिपरी पूजा करना ये मामणोंके कर्तव्य हैं।
नीतिकार कामन्दक ने भी कहा है कि 'ईश्वर-भक्ति कराना, शास्त्रोंकन पढ़ाना, और विशुद्ध-शिपुरुषसे पान प्रहण करना ये तीन प्रकारके ब्राह्मणों के जीविकोपयोगी कर्तव्य मुनियोंने कहे हैं ॥॥
। तथा च भगय जिनसेनाचार्य:द्विजोतो दिजिम्मेष्टः क्रियातो गर्भतश्च यः। क्रिपामंत्रविधीनस्तु केवल नामधारक:
प्रादिपुराण पर्व ३८ रोक ४८ । २ तथा च भगवन्जिनसेनाचार्य:अधीरपण्याने दान (
जिम्मेति वक्रिया: पादिपुषण पर्व परको
नोट:-उरलोकका दूसरा चरब प्रादिपुरायमें 'प्रविश्यायेति सतिया: ऐ गाना था, जिससे अर्थसंगति ठीक ना होती थी, अतएव हमने उसे संशोषित और परिवर्तित करके सिमामा
३ वषाच कामन्दक:-- माजनाप्यापन शुद्ध विशुदाय प्रतित्रा। विस्यमिद माहुनियो न्यायिनः ॥३॥
कामन्दकीय-नीतिसार ।