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* नीतिवाक्यामृत *
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मासिकदर्शनका म्यरूप:-- र परिकव्यवहारप्रसाधनपरं लोकायतिकम् ॥ ३४ ।। ब-शो केवल इस लोकसभी कार्यों पदापान और मांसभक्षमा आदि-का निरूपण नास्तिक-दर्शन कहते हैं।
नास्तिकमतके अनुयायी (माननेवाले) वृहस्पति--ने कहा है कि 'मनुष्यको जीवनपर्यन्त पाहिये-इच्छानकृन्त मद्यपान और मांसभक्षण आदि करते हुए सुखपूर्वक जीवन व्यतीत
कोई भी मृत्युसे बच नहीं सकता । भस्म हुए शरीरका पुनरागमन--पुनर्जन्म कैसे अर्थात् नहीं होसकता ॥९॥ निमें हवन करना, तीनों बेदोंका पढ़ना, दीक्षा धारणकरना, नग्न रहना, और शिर मुड़ाना गाई मूर्ख और बालसी पुरुषों के जीवन-निर्वाहके साधन है ॥२॥
-धन कमाना और काम-विषयभोग-ये दो ही पुरुषार्थ-पुरुषके कर्तव्य-है। शरीर ही
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भावार्थ:-नास्तिकदर्शन उक्तप्रकार केवल इसलोकसम्बन्धी कार्याका · निर्देश करता है, वह कि सस्कर्तव्यों-अहिंसा, परोपकार और सत्य आदिका निरूपण करनेमें असमर्थ होनेके गि पुरुषों के द्वारा उपेक्षणीय - त्याज्य--(छोड़नेयोग्य) है ॥ ३४॥ नासिक-दर्शनके शानसे होनेवाला राजाका लाभ:- .
कायतो हि राजा राष्ट्रकण्टकानुच्छेदयति ॥३५॥ पर्व:-जो राजा नास्तिक-दर्शनको भलीभाँति जानता है वह निश्चयसे राष्ट्रकण्टको-प्रजाको नेपाले जारपौर आदि दुष्टों को जड़-मूलसे नष्ट कर देता है। भावार्थ:-पयपि नास्तिकोंके सिद्धान्तको पढ़नेले मनुष्योंके हृदयमें क्रूरता-निर्दयता-उत्पन्न सोपारलौकिक सत्कर्तव्यों-दान-पण्यादि-से पहमख होजाते अतएव नास्तिक-दर्शन पाके धरा त्याज्य छोड़नेयोग्य-होनेपर भी राजाको उसका ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है।
सस सके हृदय में निर्दयता उत्पन्न होती है जिससे वह राष्ट्र के कल्याण के लिये अपनी विशाल समिसे प्रमा-पीड़क और मर्यादाका उल्लकन करनेवाले जार-चौर आदि दुष्टोंके मलोच्छेद करने में बाई और इसके फलस्वरूप वह अपने राष्ट्रको सुरक्षित एवं वृद्धिंगत करता है ।।३।।
का मुख जीपेत् नाति मृत्योरगोचरः। भिभूतरूप देहस्य पुनरागमनं कृतः ॥१॥
अमिहोत्र' प्रयो वेदाः प्रज्या नग्नमुण्डता। सीरवीनाना जीवितेन्दो मतंगुरुः ॥ २॥ कामाक्षेत्र पुरुषाथी', देहण्व प्रात्मा इत्यादि ।