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* नीतिवाक्यामृत
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भावार्थ:-याल्यकाल में बालकोंके हृदय नवीन मिट्टीके बर्तनोंकी तरह अत्यंत कोमल होते हैं, इस लिये उनके मानसिक क्षेत्रमें जैसे- प्रशस्त या अप्रशस्त ( अच्छे या बुरे ) संस्कारोंका बीजारोपया किंवा जाता है वह स्थायी अमिट होता है, अतएव उनके शिक्षक – गुरुजन - उत्तमसंस्कार - युक्त सदाचारी, कुलीन और विद्वान् होने चाहिये ।
वर्ग' विद्वान् ने भी कहा है 'जो मनुष्य बाल्यकालमें जिस प्रकार की अच्छी या बुरी विद्या पढ़ लेता है यह उसीके अनुकूल कार्योंकी करता रहता है और पुनः किसी प्रकार उनसे निवृत्त नहीं होता ॥ १
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निष्कर्षः - भवः उत्तम संस्कार-युक्त - भद्रप्रकृति (सदाचारी) होनेके लिये शिष्यों के शिक्षक – गुरुजनकुलीन, सदाचारी और विद्वान् होने चाहिये ॥ ७४ ॥
अब दुरामही हठी -- राजाका होना अच्छा नहीं है इसे बताते हैं:
अन्ध इव वरं परप्रणेयो' राजा न ज्ञानलबदुर्विदग्धः ॥ ७५ ॥
अर्थः- जो राजा जन्मान्ध- जन्मसे अन्धे पुरुष – के समान मूर्ख हैं परन्तु यदि वह दूसरे मन्त्री और अमात्य आदि द्वारा कर्तव्य मार्ग-सन्धि विग्रह यान और आसन आदि पागुरुय में प्रेरित किया जाता है तो ऐसे राजाका होना किसीप्रकार अच्छा है । परन्तु जो बोसे राजनैतिक ज्ञानको प्राप्तकर दुराग्रही- छठी-है- अर्थात सुयोग्य मन्त्री और श्रमात्य आदिकी समुचित सलाहको नहीं मानता उसका राजा होना अच्छा नहीं है - हठी राजासे राज्यकी क्षति होनेके सिवाय कोई लाभ नहीं ।
गुरु' विछानने कहा है कि 'मूर्ख राजा मंत्र - सलाह- में कुशल मंत्रियोंके द्वारा राजनैतिक कर्तव्योंसन्धि और विग्रह आदि बाहुगुण्य में प्रेरित कर दिया जाता है, इसलिये वह कुमार्ग में प्रवृत्त नहीं होता परन्तु थोडेसे ज्ञानको प्राप्त करनेवाला राजा उसमें प्रवृत होजाता है || ११
निष्कर्ष:- राजाका कर्तव्य है कि वह राजनीतिके विज्ञान और कुशल मन्त्रियोंकी उचित सप्ताहको सदा माने और कदापि दुराग्रह न करे ॥ ७५ ॥
अब मूर्ख और दुरामही राजाका वन करते हैं:
नीलीक्से वस्त्र इव को नाम दुबिंदग्धे अर्थ :- मूर्ख और दुराग्रही - हठी- राजाके बगल में समर्थ होसकता है ? कोई नहीं ।
१ तथा च वर्ग:
कुविद्या वा सुविधां वा प्रथमं यः पठेः । तथा कृत्यानि कुक्षणो न कर्मचिभिवर्तते ॥ ७
३ तथा च गुरुः-मंत्रिमंत्रकुशलैरधः चार्यते नृपः ।
कुमार्गे न याति स्वशानस्तु गच्छति ॥ १ ॥
राशि रागान्तरमाधसे ।। ७६ ।। अभिप्रायको नीले रंगले रंगेहुए वस्त्र के समान कौन
२० भू० प्रति परमप्राशो' और गवर्न• सायरी पूना की
यद कुछ नहीं, तथापि विचार करने से संस्कृत डी० पु० का पाठ सुंदर प्रतीत हुआ ।
लि. मू० प्रतिमें 'जायो' ऐसा पाठ है परन्तु