________________
* नीतिवाक्यामृत
अत्र शिष्टोंके साथ नम्रताका वर्ताव करने वाले राजाका लाभ बताते है:
शिष्टानां' नीचैराचरमरपतिरिहलोके स्वर्गे च महीयते ॥६६|| अर्थ:-जो राजा शिष्टपुरुषों के मानताका महाकवा है हा सापाने और स्वर्ग में पूजा जाता है ॥६॥
हारीत' विद्वानने भी लिखा है कि 'जो राजा शिष्टपुरुषोंकी भक्ति करने में सत्पर है वह परलोको मा हात्म्य-बड़प्पन-को प्राप्त होकर स्वर्गमें देवों और इन्द्रादिकोंसे पूजा जाता है । अब राजाका माहात्म्य बताते हैं:
राजा हि परम दैवतं नासौ कस्मैचित् प्रणमत्यन्यत्र गुरुजनेम्यः ||७०॥ अर्थ:-राजा अत्यन्त भाग्यशाली होता है, इसलिये यह पूज्यजनों (देव, गुरु, धर्म और मावा पिताआदि)के सिवाय किसीको नमस्कार नहीं करता। ____ भावार्थः-शास्त्रकारों ने कहा है कि पूज्योंकी पूजाका उल्लङ्घन करनेसे कल्याणके मार्ग में रुकावट श्रा जाती है इसलिये देव, गुरु और धर्म तथा माता-पिता आदि गुरुजनोंकी भक्ति करना प्रत्येक प्राणीका कर्तव्य है ।।७।। अब दुष्टपुरुषसे विद्या प्राप्त करनेका निषेध करते हैं:
परमज्ञानं नाशिष्टजनसेवया विधा ॥७॥ अर्थः-मनुष्यको मूर्ख रहना अच्छा है परन्तु दुष्ट पुरुषकी सेवा करके विद्या प्राप्त करना अच्छा नहीं है ॥७॥
हारीत' विद्वानने कहा है कि 'जिसके संसर्गसे राजा पापी हो जाता है ऐसे दुटकी संगसिसे विद्वत्ता प्राप्त करना अच्छा नहीं उसकी अपेक्षा मूर्ख रहना अच्छा है ॥१॥ १ 'शिष्टषु नीचराचरनरपतिरिह परन च महीयते ऐसा पाठ मु० और १० लि. म. मतियोंमें है परन्तु विशेष अर्ष
भेद कुछ नहीं है। २ तथा चारीत:
साधुपूजापरो राजा माहात्म्यं प्राप्य भूतले । स्वर्गगतस्ततो देवैरिन्द्राद्यैरपि पूज्यते ॥१॥ ३ 'परम दे। ऐसा पाठ पूना क्षायबेरी की है. लि० मा प्रतिमें है परन्तु अर्थभेद कुछ नहीं है। ४ भगवजिनसेनाचार्यः प्राह:प्रतियध्नाति हि यः पूज्यपूजाव्यतिक्रमः
. श्रादिपुरायासे ५ तथा च हारीत:पर जनस्य मूखस्व नाशिजनसेमया । पांडित्यं यस्य संसर्गात् पापात्मा जायते नुगः ।।।।।