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मार्गदर्श
* नीतिवाक्यामृत
को प्राप्त हो जाता है उसीप्रकार जड़ - मूर्ख मनुष्य भी निश्चयसे शिष्टपुरुषोंकी सङ्गतिसे है ॥१३॥
:- Wave उक्त आधीक्षिकी और त्रयी आदि विद्याओंका ज्ञान प्राप्त करनेके लिये प्रत्येक धमकी सङ्गति करनी चाहिये ||६६ ||
" द्वारा बातका समर्थन किया जाता है:
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अन्यैव काचित् ' खलु वायोपजलतरूणाम् ||६७||
जिसप्रकार जलके समीप वर्तमान वृक्षोंकी छाया निश्चय से कुछ अपूर्व विलक्षण (शीतल (क) ही होजाती है उसीप्रकार विद्वानोंके समीप वर्तमान पुरुषोंकी कान्ति भी अपूर्व - विलमी है- अर्थात् वे भी विद्वान् होकर सुशोभित होने लगते हैं ।
मिर्ग:- इस लिये प्रत्येक मनुष्यको व्युत्पन्न - विद्वान - होनेके लिये विद्वज्जनोंका संसर्ग करना
गुरुमोंके सद्गुण मठाते हैं:
भदेव विद्वानने भी कहा है कि 'जो राजा मूर्ख होनेपर भी शिष्टपुरुषोंकी सङ्गति करता है कान्ति जलके समीप रहनेवाले वृक्षके समान अपूर्व होजाती है ॥१॥
वंशवृत्तविद्याभिजनविशुद्धा हि राशानुपाध्यायाः ||६८ ||
क
- जो वंश परम्परासे विशुद्ध हों - जिनके पूर्वज - पिता आदि - राजवंशके गुरु रह चुके होंस्वार(महिला, सत्य और अचौर्य आदि चरित्र धर्म) विद्या--राजनैतिक तथा धार्मिक आदि विविध ज्ञान और कुलीनता- उपकुलमें उत्पन्न होकर सत्कर्तब्योंका पालन- इन सद्गुणों से अलंकृत विवाद निश्चयसे राजानके गुरु हो सकते हैं ||६८
'भौतिकार नारवने" भी वक्त सिद्धान्तका समर्थन किया है कि 'जिनके पूर्वज राजवंशमें अध्यापक रद्द जो सदाचारी, विद्वान और कुलीन हों वे ही राजाओं के गुरु होसकते हैं ||१||'
( ० और इ० मिलित प्रतियों में 'काचित्' शब्द नहीं है और उसके न होने पर भी अर्थभेद कुछ नहीं होता । देव:अजायते शोभा मुफ्त्यानि अात्मनः ।
शस्य सलिला दूरवर्तिनः ॥ १ ॥
नारद:
पूर्वेका पाठका येषां पूर्वजा वृत्तसंयुताः । विधाता नृपाणां गुरवश्च ते ॥ १५