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* नीतिवाक्यामृत १
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लापिन-अध्यात्मविद्या (पर्शनशास्त्र)के शानसे होनेवाले लाभका निरूपण करते हैं:--
सो हि राजा सत्वमवलम्बते रजःफल चापलं' च परिहरति तमोमि मिभ्यते ।।६२॥ -ति-शरीर और इन्द्रियादिक स्थूल तथा कानावरणादि कर्मरूप सस्मप्रकृति और पुरुष
सतपको जाननेवाला-भेदशानी-राजा सात्विक प्रकृतिको धारणकर रजोगुणसे होने वाली --काम और कोषादि विकारोंसे होनेवाली उच्छ खलता (नीतिविरुद्धप्रवृत्ति) का त्याग कर देता वासिकमावों-अज्ञानादि भावों से पराजित नहीं होता। सामानशास्त्रका अध्ययन मनुष्यको अज्ञानांधकारसे पृथक्कर मानके प्रकाशमें लाता है समावि राजसिकमावोंसे होनेवाली दानवताको नष्टकर सात्विकप्रकृति द्वारा शुक्नकर्म-संसार
म सेवा प्रादि-करनेके लिये प्रेरित करता है जिससे वह सच्ची मानवताको प्राप्त कर लेता है । शिक:-अत एव प्रत्येक मनुष्यको उक्त सद्गुणोंसे अलंकृत होने के लिये एवं राजाको भी शिष्ट
और हनिमहमें उपयोगी आन्वीक्षिकी विद्या-दर्शनशास्त्र का वेत्ता होना चाहिये ॥६॥ ET विधाओंका प्रयोजन बताने है:
विपन्यात्मविषये, प्रयी-वेदयज्ञादिषु, वार्ता कृषिकर्मादिका, दण्डनीतिः शिष्टपालनme ॥६॥ ई-बाम्बीतिकी-दर्शनशास्त्र-आत्मवत्वका, यी-घेद (अहिंसा धमके प्रतिपादक द्वादशा
और शादि-ईश्वरभक्ति, पूजन, हवन, जप आदि अहिंसामय क्रियाकाण्ड मादि-का,वातोमादकषि, विया, वाणिज्य और शिल्प आदि जीविकोपयोगी कर्तव्योंका, और दण्डनीतिविगा सा और होका निमहरूप राजधर्मका निरूपण करती है।
-सारसन (जैनदर्शन) भी अंतर्भूत-शामिल है। इस प्रकार वृहस्पति--सुराबार्यने इन्द्र के मद उस काय कायक जेनरर्शनको कैसे समर्थन किया ? अर्थात् यदि जैनदर्शन नवीन प्रचलित--अभीक चला हुमा-होता
मोरासतिने इन्द्र के समक्ष उसे प्रान्वीक्षिकी विद्यामें स्वीकार किया ? ... निका-प्राचार्यभीके उक्त प्रमाणसे यह मात निर्विवाद प्रमाणित-सत्य-सिद्ध होती है कि अन्यनीतिक
दिनादिनदर्शनको मान्वीक्षिकी-अध्यात्मविद्या- स्वीकार करते हैं।
म:-अमृत में प्राचार्यश्री काते है कि केवल वेदविरोधी होने के कारण कुछ नीतिकार बौद्ध और जैनदर्शन दिली मिया नहीं मानते । परन्तु श्राचार्यश्री यशस्तिलकके श्राधारसे सिबकि अन्य निष्पक्षनीतिकारोंने भी
शादीक्षिकी विना स्वीकार किया है।
हल टी० पुस्तक में नहीं है किन्तु मुमू और गर्न लायवेरो पूनाकी १० लि. दोनो मूल प्रतियों . : (2003 और नं.७१) में से संकलन किया गया है। PROF.और उस पूनाशाय रोकी न. ७३७ की ह. लि. मूलप्रति में भी 'चाफल' ऐसा प्रशुर पाठ पा
प्रा . पूनाको न.1012 में 'पापल ऐता शुद्ध पाठ मिल गया जिससे सन्या दूर हुत्रा । सम्पादक:पल मु मोर १. शिक्षक किसी भी मू० प्रतिमें नहीं है परन्तु संकत टी• पुस्तक से संकलन किया गया है।
सम्पादक: