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मूर्ख मनुष्यकी हीनता बताते हैं :--
* नीतिवाक्यामृत
न ज्ञानादपरः' पशुरस्ति ॥ ३७ ॥
अर्थ:-संसार में मूर्खको छोड़कर दूसरा कोई पशु नहीं है; क्योंकि जिसप्रकार पशु पास आदि भक्षण करके मलमूत्रादि क्षेपण करता है और धर्म-अधर्म-कर्तव्य - अकर्तव्य को नहीं आना उसीप्रकार मूर्ख मनुष्य भी खान-पानादि क्रिया करके मलमूत्रादि क्षेपण करता है और धर्म-अधर्म-कर्तव्यअकर्तव्य को नहीं जानता ।
मूर्खोग शास्त्रशानसे पराङ्मुख – रहित - दोनेके कारण धर्म और अधर्मको नहीं जानते इसलिये बिना सींगों के पशु हैं ॥ १ ॥'
टिभीका है कि
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नीतिकार महात्मा भर्तृहरिने कहा है कि 'जिसे साहित्य और संगीत आदि कलाओंका ज्ञान नहीं हैजो मूर्ख है - यह विना सींग और पूँछका साक्षान- यथार्थ - पशु है। इसमें कई लोग यह शङ्का करते हैं कि यदि मूर्ख मनुष्य यथार्थमें पशु हैं तो वह घास क्यों नहीं खाता ? इसका उत्तर यह है कि वह घाम न arकरके भी जीवित है, इसमें पशुओंका उत्तम भाग्य ही कारण है, नहीं तो यह घासभी खाने
लगता ।। १ ।।'
rses : - इसलिये प्रत्येक व्यक्तिको कर्तव्यबोध और श्रेय की प्राप्तिके लिये नीतिशास्त्र आदिका शान प्राप्त करना चाहिये ||३७||
जिसप्रकारके राजासे राज्यकी क्षति होती है उसे बताते हैं:
चरमराजकं वनं न तु मूर्खो राजा ॥ ३८ ॥
अर्थ:- पृथ्वीपर राजाका न होना किसी प्रकार अच्छा कहा जासकता है परन्तु उसमें मूर्ख राजाका होना अच्छा नहीं कहा जा सकता ।
भावार्थ:- जिस देशमें मूर्ख राजा का शासन होता है वह नष्ट हो जाता है ॥३
१ श्रभ्य:' इसप्रकार मु० मू० पुस्तक में पाठ है किन्तु अर्थभेद कुछ नहीं है।
२ तथा च वशिघ्रः---
मर्त्या मूर्खतमा लोकाः पशवः शृङ्गवर्जिताः ।
धर्मो न जानन्ति यतः शास्त्रपराङ्मुखाः ||१||
३ तथा च भर्तृहरि:-- साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षाशुः पृच्छविद्यायहीनः । तू न खादन्नपि जीवमानस्तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥१॥
तसे |