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* नीतिवाक्यामृत ॐ
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प्रवृत्ति करता है बद्दी राजनीति और पराक्रमका स्थान है । परन्तु जिस राजामें राजनैतिक ज्ञान नहीं है यह नम्र हो जाता है— अपने राज्यको खो बैठता है ॥ १ ॥
निष्कर्ष:-- राजाको राजनीति और पराक्रमी प्रातिके लिये या तो स्वयं बुद्धिमान होना चाहिये अथवा उसे मन्त्री द्वारा कही हुई बातको माननी चाहिये । उसे कापि दुराग्रही नहीं होना चाहिये ||३१|| अब बुद्धिमान् राजा का लक्षण निर्देश किया जाता हैः
यो विद्याविनीतमतिः स बुद्धिमान् ॥ ३२ ॥
अर्थ:- जिसने नीतिशास्त्रोंके अभ्यवनसे राजनीतिज्ञान और नम्रता प्राप्त की है उसे बुद्धिमान् कहते हैं ।
गुरु' विद्वानने लिखा है कि 'जिसकी बुद्धि नीतिशास्त्रोंके अध्ययनसे विशुद्ध है वह बुद्धिमान है परन्तु जो नीतिशास्त्र के ज्ञानसे शून्य और केवल शूरवीर है वह नष्ट हाजाता है-अपने राज्यको खो बैठता है ॥ १ ॥ '
अब शास्त्रज्ञान से शून्य केवल शूरवीरता बसानेवाले राजाकी अवस्था बताते है:
सिंहस्येव केवलं पौरुपावलम्बिनो न चिरं कुशलम् ॥ ३३ ॥
अर्थः- जो राजा नीतिशास्त्रके शानसे शून्य है और केवल शूरवीरता ही दिखाता है उसका सिंहकी तरह चिरकाल तक कल्याण नहीं होता - अर्थात् जिसप्रकार आक्रमण करनेवाला सिंह मार डाला जाता है उसी प्रकार नीतिज्ञान से शून्य और केवल तीक्ष्ण दंड देने वाला राजा भी दुष्ट समझ कर मार दिया जाता है
शुक* विद्वान्ने लिखा है कि 'केवल आक्रमण करनेके कारण मृगों के स्वामी- शेर को मनुष्य 'हरि' ( हन्यते इति हरिः - मार डालने योग्य) कहते हैं उसीप्रकार नीतिशास्त्र के ज्ञानसे शून्य केवल क्रूरता दिखानेवाला भी नाशको प्राप्त होता है ॥ १ ॥
नीतिशास्त्र के ज्ञान से शून्य पुरुषकी हानि बताते हैं:
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शस्त्रः शूर इवाशास्त्रः प्रज्ञायानपि भवति विद्विषां वशः ॥ ३४ ॥
अर्थ:- जिसप्रकार बहादुर मनुष्य भी हथियारोंके बिना शत्रुओंसे पराजित कर दिया जाता है।
३ तथा च गुरुः
शाखानुगा भत्रेनुद्धिर्यस्याशय बुद्धिमान् ।
शास्त्रया विहीनस्तु शौर्ययुक्तो विनश्यति || १ |
२ तथा च शुक्रःपौरुषमृगास्तु: स प्रोभ्यते जनैः ।
शास्त्रबुद्धिविहीनस्तु यतो नाशं स गच्छति ॥ १
३'नर इवाशास्त्रः प्रशावानपि भवति सर्वेषां गोचर:' इस प्रकार मु० हैभेव कुछ नहीं है।