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* नीतिवाक्यामृत
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आगार्थ:- पैतृक राज्यके मिल जानेपर भी जो राजा भीक होता है-पराक्रम नही करता-सैनिकशक्ति संगठित शक्तिशाली नहीं बनाता उसका राज्य नष्ट होजाता है । इसीप्रकार जो पराक्रमशक्ति सैनिक
से राज्य संपादन कर लेता है परन्तु राजनैतिक ज्ञान-संधि, विग्रह, यान और भासन भाविका खान, देश और कालके अनुसार प्रयोग करना-नहीं जानता उसका राज्य भी नष्ट होजावा है। एक विद्वानने लिखा है कि 'जो राज्य जलके समान (जिसप्रकार पातालका अल यंत्र द्वारा खीर जाता है) पराक्रम-सैनिक शक्ति से प्राप्त कर लिया गया हो परन्तु बुद्धिमान् राजा अब उसे नष्ट हुमा देले सब उसे राजनीति (संधि, विग्रह, यान और प्रासन आदि उपाय) से उस राज्यको पूर्णकी सुरक्षित रखनेका प्रयत्न करना चाहिये ॥१॥ मार' नामके विद्वान्ने लिखा है कि 'जो राजा पराक्रमसे शून्य होनेके कारण संप्राम-युद्ध-से होजाता है-सैनिक शक्तिका समुषित प्रयोग नहीं करता-इसका भी कुलपरम्परागत राज्य नष्ट हो
निष्कर्षः-कोई भी राजा केवल आचार सम्पत्तिसे अपने राज्यको नष्ट होनेसे बचा नहीं सकता, कि माचारवान्-शान्तराजाको शलोग आक्रमण करके पराजित कर देते हैं। मय प्रातराज्य सचिव रखने के लिये उसे प्राचार सम्पसिके साथ २ अपनी सैनिक रातिको मजबूत बनाकर पराक्रम
होना चाहिये। इसीप्रकार केवल पराकम-सैनिकशक्ति से ही कोई साम्राज्य चिरस्थायी नहीं रह ... क्योंकि सदा पराक्रम दिखाने वाले–हमेशा, वीरण दंड देने वाले राजासे सभी लोग द्रोहरने
मतः उससे समस्त प्रजा बुन्ध होजाती है और ऐसा होने से उसका राज्य नष्ट होजावा ॥३०॥ कौनसा राजा राजनैतिक ज्ञान और पराक्रम का स्थान होता है ? इसका समाधान किया जाता :
क्रमविक्रमयोरधिष्ठान बुद्धिमानाहार्यबुद्धिर्वा ॥ ३१ ॥ :-पही राजा राजनीति और पराक्रमका स्थान हो सकता है जो स्वयं राजनैतिक दानमा हो यो अमात्यके द्वारा साये हुए राजनीतिक सिद्धान्तोंका पालन करने वाला हो।
विद्यानने लिखा है कि जो राजा स्वयं बुद्धिमान है अथवा जो अमात्यकी पुखिके अनुस याप गुरु:रादि सलिलं यादलेन समाहतम् । भूगोलि तमोऽध्येति पम्बाकालस्य संक्षयम् ? ॥१॥
याब नम:-- अपामयुतो यस्ता राजा संग्रामकातरम्।
विमाग तस्य नाश राज्य प्रगति ॥॥ वारक
यो राजा नीतिौर्यगा भवेत् । कामादिल इदिसनो विनश्पति ||