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* नीविषाक्यामृत *
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अब राज्यकी वृद्धिका उपाय बताते हैं:
आचारसम्पत्तिः क्रमसम्पत्ति करोति ।। २८ ॥ अर्थ:-सदाचारलक्ष्मी वंशपरम्परासे या पुरुषार्थसे प्राप्त हुई राज्यलक्ष्मीको चिरस्थायी बनाने में कारण है।
शुक्र' विद्वान ने लिखा है कि जो राआ अपने भविकज्ञानको पार करके लोकव्यवहारमें निपुण होता है इससे उसके वंशपरम्परासे चले आये राज्यकी श्रीद्धि होती है ।। १॥
निष्कर्षः--नीतिविरुद्ध असत् प्रवृत्ति-दुराचार-से राज्य नष्ट होजाता है; अतएव जो राजा अपने राज्यको चिरस्थायी बनानेका इच्छुक है उसे सदाचारी होना चाहिये ।। २८ ॥ अब जिस गुणसे एराक्रम सुशोभित होता है उसका वर्णन करते हैं:
अनुत्सेकः खलु विक्रमस्यालङ्कारः ॥ २६ ।। अर्थ:-विनय अभिमान न करने से पराक्रम सुशोभित होता है।
गुरु' विद्वान्ने लिखा है कि 'मनुष्य सुवर्णादिके आभूषणोंसे रहित होने पर भी यदि बिनयशील है तो यह विशेष सुशोभित होता है, परन्तु घमण्डी पुरुष अनेक आभूषणोंसे अलंकृत होनेपर भी लोकमें ईसीका पात्र होता है॥१॥
जो राजा 'मैं ही बड़ा शूरवीर हूँ ऐसा समझ कर अभिमानके यश होकर अपने अमात्य, गुरुजन और बन्धुजनोंका सत्कार नहीं करता वह रावणकी तरह नष्ट होजाता है ॥ २॥'
निष्कर्षः-अत: नैतिक पुरुषको कदापि अभिमान नहीं करना चाहिये ॥२॥ अब राज्यकी शातिका कारण बताते हैं:
क्रमरिक्रमयोरन्यतरपरिग्रहेण राज्यस्य दुष्करः परिणामः' ॥३०॥ अर्थ:--.. राजा क्रम (सदाचार और राजनैतिक झान) और पराक्रम सैनिकशक्ति इनमेंसे केवल एक ही गुण प्राप्त करता है उसका राज्य चिरस्थायी नहीं रहता-लष्ट हो जाता है। १ तया च शुक्र:
पौकिक व्यवहार य: कुरुते नयवृद्धितः । तद्ध्या वृद्धिमायाति राज्यं तत्र क्रमागतम् ॥१॥ २ तषा च गुरु:भूषणेरपि संस्यक्तः स विरेने विगर्वकः । सगर्यो भूषणादयोऽपि लोकेऽस्मिन् हास्यता बजेत् ॥ ३ ॥ योऽमात्यान् मन्यते गर्वान्न गुरून् न च बांधवान् ।
शरोऽहमिति विशेयो म्रियते रावणो यथा ॥२॥ ३ 'क्रमविक्रमयोरन्यतमपरिग्रहेण राज्यस्य दुःकरः परिणाम:' ऐसा मु. ० पुस्तकमें पाट है र अर्थ मेव च नहीं है।