________________
* नीतिवाक्यामृत
अन्य धर्म के फल (मनुष्यजन्म, उच्चकुल, धनादियभव, दीर्घायु, विद्वत्ता और
उपभोग करता हुआ भी पापोंमें प्रवृत्ति करता है यह मूर्ख है। सोनवने कहा है कि 'पूर्वजन्म में किये हुए धर्मसे मनुष्योंफो सुख मिलता है इसे विद्वान् विमानते हैं परन्तु पाई जोग नहीं जानते मासे वे पापोंमें प्रथम होते हैं ॥१॥ ... हा है कि जो पुरुष धर्मसे उत्पन्न हुए फलों-पूर्वोक्त मनुष्यजन्म आदि को भोगता
सानो भगबुद्धियुक्त है-अर्थात् धर्ममें प्रवृत्ति नहीं करता, यह मूर्ख, जड़, प्रशानी और
साब या दूसरोंमे प्रेरित हुश्रा भी अधर्म-पाप करनेकी चेष्टा नहीं करता वह विद्वान्, न और वास्तविक पडिन है ।।२।। पान कहा है कि जो मनुष्य प्रज्ञानसे धर्मको नष्ट करके इतके फलों ( धनादिसम्पत्ति
का उपभाग करसे है वे पापी अनार और पाम आदिके वृनोंको जबसे उखाड़कर -अर्धान जिस प्रकार अनार आदि सुन्दर सृक्षोंको जड़ से उखाड़कर उनके फलों का etक इसमे भनिप्यमें उनके फलोमे यक्षित रहना पड़ता है उसी प्रकार धर्मको फल-गुम्बका भोगना भी महामूर्खता है। क्योंकि इससे भविष्यमें मुम्ब
-
भन्य प्राणी ! तुझे पूर्वजन्ममें किये हुए अहिंसामधान दान, शील और तपश्मयो धादि सो अनुष्ठानसे धनानि मुखसामग्री प्राप्त हुई है। इसलिये तुम धर्मका पालन करते हुए
मोगो। जिमप्रकार किसान धान्यादिकफे बीजसं विपुल धान्य पैदा करता है वह धाग्यके त्पादक बीजोको सुरक्षित रखकर धान्यका उपभोग करता है जिससे उसे
मा भौग्य संजायने नणा। ने महसन ते पापसेवका: 20
मा सोऽशः स पशुश्न सशोर । नविन माइमें भवति मन्दधीः ॥६॥
महामासः स धीमान् स च गए इनः । मान्यतो गावि नाथाय समीहने ॥२॥
यशस्लिम सोमदेवमूरि:विमा फलाम्मनुभवग्नि ये मोहा-|
र सन् मलात् 'पानि सपन्न ते पापाः ॥१॥ साविभवो धर्म प्रतिवल्य भोगमनुभन । मचाया कोयललम बीजमित्र ॥२॥
श्रात्मानुसासने शुम्भदाचार्यः ।