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* नोतिवाक्यामृत
भब नैष्ठिक प्रचारीका लक्षणनिर्देश करते हैं :
स नैष्ठिको ब्रह्मचारी यस्य प्राणान्तिकमदारकर्म ॥ १० ॥ अर्थ:-जो जीवनपर्यन्त विषाह न करके कामयासनासे विरक्त रहता है उसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी
, भारताज' नामके विद्वानने लिखा है कि जिस ब्रह्मचारीका समय जीवनपर्यन्त स्त्रीरहित कष्टसे यसीत होता है वह नैक्षिक प्रह्मचारी है ॥१॥
भावार्थ:- जैनाचार्योने उपनय ब्रह्मचारी और नैष्ठिक प्रचारी आदि ५ प्रकारके ब्रह्मचारी निर्दिक किये हैं, उनमें से नैष्ठिक ब्रह्मचारीको छोड़कर पायी चार प्राले प्रभावी सानो मायले पश्चात् विवाह करते हैं।॥ १० ॥ भब पुत्रका मतणनिर्देश करते है :
य उत्पनः पुनीते वंश स पुत्रः ॥ ११ ॥ अर्थः-जो उत्पन्न होकर नैतिक सदाचारहप प्रवृत्तिसे अपने कुलको पवित्र करता है वही । सचा पुत्र है।
भागुरि' विज्ञामने लिखा है कि 'जो माता पिताकी सेवामें तत्पर होकर अपने सदाचाररुप ! धर्मके पालनसे कुलको पवित्र करता है वहीं पुत्र है ।।१।।
शास्त्रकारोंने कहा है जो अपना पालन पोषण करनेवाले माता पिताका सुविधि" राजाके केशव' नाम पुत्रकी तरह उपकार ( सेवा भक्ति आदि ) करता है वही सचा पुत्र है-और जो इससे विपरीत चलता है उसे पुत्र के बल बहाने से शत्रु समझना चाहिये ॥१॥
, तथा च भारद्वाज:कलवाहितस्यात्र यस्य कालोऽतिवर्तते ।।
कण्टेन मृत्युपर्यन्तो ब्रह्मचारी स नैष्ठिकः ॥१॥ १ तथा चोक्कमा:प्रथमामिणः प्रोता ये पंचोपनयादयः । तेऽधीय शास्त्रं स्वीकुयु दोशनन्यत्र नैष्ठिकात् ॥१॥ ३ तथा च भागरि:
कुल पाति समुत्यो यः स्वधर्म प्रतिशतयेत् । पुनीते स्वकुल पुत्रः पितृमातृपरायणः॥॥ ४ पुत्रः पुषोः स्वामान मुविधरेव केशवः । य उपस्कुरुते वप्तरस्यः शत्रुः सुतच्छलात् ॥ १ ॥
-सागारधर्मामृत। ५-६ देखो प्रादिपुराण 1 वां पर्व ।