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* नीतिवाक्यामृत
करनेका उपाय बताते हैं :
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मामके विद्वानने लिखा है कि विषयोंमें श्रासक पुरुष अपने आवश्यक कार्योंमें इससे पता न करने से उन्हें उनका फल नहीं मिलता ॥ १ ॥
स्टेनसकिविरुद्धे चाप्रवृत्तिरिन्द्रियजयः ||८||
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विवेचनः नैतिक सज्जनको विषयरूपी भयानक वनमें दौड़नेवाले इन्द्रियरूपी हाथियों को विशुन्ध-व्याकुल करनेवाले हैं, सम्यग्ज्ञानरूपी अंकुशसे दशमें करना चाहिये। मुल्यतासे इन्द्रियों विषयों में प्रवृत्त हुआ करती हैं, इसलिये मनको वशमें करना ही जितेन्द्रियपन क्योंकि विषयों में अंधा व्यक्ति महाभयानक विपत्तिके गर्तमें पड़ता है ॥ ७ ॥
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-पदार्थ- प्रियवस्तु (कमनीय कान्ता आदि ) में आसक्ति न करनेवाले और विप्रकृति से प्रतिकूल वस्तुमें प्रवृत्त न होनेवाले व्यक्तिको जितेन्द्रिय कहते हैं।
यद्यपि पदार्थों का सेवन बुरा नहीं है परन्तु श्रसक्तिपूर्वक उनका अधिक सेवन करना विद्वान का भक्षण करना बुरा नहीं है किन्तु आसक्त होकर उसका अधिकमात्रा में सेवन
कारक है। अथवा अजीर्णावस्था में पथ्य न भी रोगवर्द्धक है। अतः इष्टपदार्थों में भीर प्रकृति तथा ऋतुके विरुद्ध या शिष्टाचार से प्रतिकूल पदार्थके सेवन में अज्ञान और तिम करना इन्द्रियजय है ।
-नैसिक और जितेन्द्रिय पुरुषको अपना कल्याण करनेके लिये इष्टपदार्थमें आम न प्रतिकूल पदार्थ में प्रवृत्ति न करनी चाहिये ||८||
विद्यते विषयासक्रचेतसः । हिमाषु तेषु तेषां न तत्फलम् ॥ १ ॥
जानने कहा है कि 'यदि मनुष्य शिष्ट पुरुषोंके मार्ग का पूर्ण अनुसरण - पालन न कर सके : अनुसरण करना चाहिये, इससे वह जितेन्द्रिय होता है ||१||
का दूसरा उपाय या उसका लक्षण करते हैं :--
मस्स्नं यदि न शक्यते । स्वयं येन स्यात् स्व विनिर्जयः ॥ १ ॥
अर्थशास्त्राध्ययनं वा ॥६॥
मनुष्यको इन्द्रियोंके जय करनेके लिये नीतिशास्त्रका अध्ययन करना चाहिये । अथवा हम्पयन ही इन्द्रियोंका जय - दशमें करना है।