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* नीसिवाक्यामृत *
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पत्रधारण कर जीविका करते थे ये क्षत्रिय और जो सोती, व्यापार और पशुपालन कर रिप कहलाते थे ॥२॥ या पैरयों की सेवा शुभषा कर जीविका करते थे वे शूद्र कहलाते थे, उनके भी २ भेद
कारू (२) अकार। धोबी और नाई वगैरह 'कार' और उनसे भिम 'प्रकार
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भी दो प्रकारके थे एक स्पृश्य--पर्शकरनेयोग्य और दूसरे अस्पृश्य-स्पर्शकरने के ने माग निवास करते थे ये अस्पृश्य और नाई वगैरह स्पृश्य कहलाते थे ||४|| बाई के लोग अपमा २ कार्य-जीविका करते थे । वेश्यका कार्य क्षत्रिय वा शूद्र नहीं करता म और शूद्रका कार्य कोई दूसरा करता था। विषाद, जातिसंबंध और व्यवहार ये सक मनकी भाज्ञामुसार ही सब लोग करते थे ॥५॥
भगवान ऋषभदेवने अपनी भुजाओंसे शस्त्रधारण कर क्षत्रियों की रचना की उन्हें बाई सो ठीक ही है। क्योकि ओ हायोंमें शस्त्रधारण कर दूसरे सबल या शत्रुके प्रहारसे
र बन्ने हो भत्रिय कहते हैं ।।६।। तर मगषामने अपने ऊरुओं-पैरों से यात्रा करना-परदेश जाना दिखलाकर बैरयोकी सृष्टि
दी है। क्योंकि समुद्र आदि जलप्रदेशोंमें तथा स्थलप्रदेशोंमें यात्रा करके व्यापार करना दिया है
जीवितमनुस्य तद ऽभवन् । राश्च कृषिवाणिज्यपशुपाल्योपजीविनः ॥२॥ तेषां शुभषणाटाते द्विधा कार्यकारवः । कारवो रअकायाः स्युस्ततोऽन्ये म्युरकारवः ॥३॥ कारवोऽपि मता देधा स्पृश्यास्पृश्यवि कल्पतः । तत्राश्याः प्रजामायाः स्पृश्याः स्युः कर्तकादयः ४॥ यथावं वोचित कर्म प्रजा ध्युरसकर । विवादशातिसंयंधव्यवहाररच तम्मतं ॥५॥ स्वहोम्यो धारयन् शस्त्र क्षत्रियानसुविभुः। चतत्राये नियुका हि क्षत्रियाः शास्त्रपाययः ma जाम्यां दर्शयन् यात्रामलादीबगिजः प्रभुः । जलस्यतादियात्राभिस्तदासियोतया यतः १७||