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* नीतिवाक्यामृत
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मारवास' नामक विहामने लिखा है कि 'जो व्यक्ति बिना प्रयोजन दूसरोंको कप पहुँचाकर हर्षित होता है एवं अपनी इष्टवस्तुकी प्राप्तिमें किसी प्रकारका संदेह न होनेपर हर्षित होता है उसे विद्वानोंने हर्ष कहा है।
भावार्थ:-यापि नैतिक मनुष्यको अपने शारीरिक और मानसिक विकास के लिये सदा प्रसनवित्त-इर्षिय रहना उत्तम है परन्तु बिना प्रयोजन दूसरे प्राणियों को सताकर-कष्ट पहुँचाकर हर्षित होना इसे अन्याययुक्त होने के कारण त्याज्य बताया गया है, क्योंकि इससे केवल पापर्वध ही नहीं होता, किन्तु साथमें वह व्यक्ति भी (जिसको निरर्थक कष्ट दिया है) इसका अनर्थ करने सत्तर रहता है। एवं धनादि मभिक्षषित वस्तु के मिलने पर, अधिक हर्षित होना भी जुताका सूचक है, क्योंकि इससे नैतिक व्यक्तिकी गम्भीरता नष्ट होती है एवं लोकमें दूसरे लोक या करने लगते हैं, साथमें प्राध्यात्मिक ट्रिसे भी संपत्तिकी प्राप्तिमें हर्ष करना वहिरात्मबुद्धिका प्रदर्शन है।
हस्परिषद्वगंसमुपदेशः समाप्तः ।
अथ विद्यावृद्धसमुद्देशः। भब राजाका लक्षण करते हैं:---
योऽनुकूलप्रतिकूलयोरिन्द्रयमस्थानं स राजा ॥ १ ॥ अर्थ:-जो अनुकूल चलनेवालों ( राजकीय प्राशा माननेवालों ) की इन्द्र के समान रक्षा करता है तया प्रतिकूल पलनेवालो-अपराधियोंको यमराजके समान सजा देता है उसे राजा कहते हैं ।।१॥
भार्गव नामके विद्वान्ने भी कहा है कि 'राजा शत्रुओं के साथ कालके सहश और मित्रों के साथ इन के समान प्रवृत्ति (कमसे निग्रह और अनुग्रह का बर्ताव करना) करने वाला होता है, कोई पति केवल अभिषेक और पट्ट बंधनसे राजा नहीं होसकता-उसे प्रतापी और शूरवीर होना चाहिये । अन्यथा अभिपेक (जल से धोना) और पट्ट बंधन-पट्टी बाँधना भादि चिन्ह को प्रण-भावके भी किये जाते हैं उसे भी राजा कहना चाहिये ॥१॥ अप राजाका कर्तब्ध निर्देश करते है:
रामो हि दुष्टनिग्रहः शिष्टपरिपालन व धर्मः ॥ २ ॥ अर्थः-पापियों-अपराधियोंको सजा देना और सजन पुरुषों की रक्षाकरना, राजाका भर्म है।
१ तथा च मारदास:प्रपोजन बिना दुःख यो सत्यान्यस्य इभ्यति ।
मात्मनोऽनपसोस हर्षः प्रोगाते हुरैः ॥॥ २ तथा भार्गव:बर्तते योऽरिमिषाया यमेनाभः भूपतिः । घमिरेको अवस्थापि म्यान पामेवगा